Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
View full book text
________________
तस्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वय :
आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः ।
-- ५, ३१. देशावगासियस्स समणोवासएण पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा-आणवणपयोगे, पेसवणपओगे, सहाणुवाए, रूवाणुवाए, वहियापोग्गलपक्खवे ।।
उपा० अध्या०१ छाया- देशावकाशिकस्य श्रमणोपासकेन पश्चातिचाराः ज्ञातव्याः, न
समाचरितव्याः, तद्यथा-आनयनप्रयोगः प्रेष्यप्रयोगः, शब्दानुपातः,
रूपानुपातः, वहिपुद्गलप्रक्षेपः। भाषा टीका - श्रमणोपासक को देशावकाशिक के पांच अतिचार जानने चाहिये। किन्तु उन पर आचरण न करना चाहिये । वह यह हैं -
आनयन प्रयोग-सीमा के बाहर से किसी वस्तु को मंगवा लेना। प्रष्य प्रयोग- अपने न जाने के प्रदेश से बाहिर किसी वस्तु को भेजना।
शब्दानुपात-नियत देश से बाहिर न जाते हुए भी शब्द के द्वारा अपना काम निकाल लेना।
रूपानुपात-इसी प्रकार सीमा से बाहिर कोई संकेत आदि दिखाकर अपना काम निकाल लेना।
बहिपुद्गल प्रक्षेप-इसी प्रकार परिमाण से बाह्य देश में ढेला पाषाण भादि फेंक कर अपना काम चलाना।
कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्याऽसमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि।
७, ३२. अणट्ठादंडवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा-कन्दप्पे कुक्कुइए