Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वय :
प्रश्न- भगवन् ! अंतराय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर- गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है: - दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय ।
इस प्रकार प्रकृतिबंध का वर्णन किया गया। अब स्थितिबंध का वर्णन किया
जाता है
आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोट्यः परा स्थितिः ।
उदहीसरिसनामाण, तीसई कोडिकोडीओ | उक्कोसिया ठिई होइ, अन्तोमुद्दत्तं जहन्निया ॥ १६ ॥ आवरणिज्जाण दुरहंपि, वेयाणिज्जे तहेव य । अन्तरा य कम्मम्मि ठिई एसा वियाहिया ॥ २० ॥
उत्तराध्ययन अध्ययन ३३.
८, १४.
गया
उदधिसदृङ्नाम्नां, त्रिंशत्कोटाकोटयः । उत्कृष्टा स्थितिर्भवति, अन्तर्मुहुर्त जघन्यका ॥ १९ ॥ आवरणोर्द्वयोरपि, वेदनीये तथैव च ।
अन्तराये च कर्मणि, स्थितिरेषा व्याख्याता ॥ २० ॥
भाषा टीका – ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्म की स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागर और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त होती है।
सप्ततिमहनीयस्य ।
८, १५.
उदहीसरिसनामाण, सत्तरिं कोडिकोडीओ । मोहणिजस्स उक्कोसा, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥
उत्तराध्ययन अ० ३३, गाथा २१.