Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari

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Page 276
________________ २५८ ] तत्त्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वयः १७-वैमानिकों के दो भेद होते हैं कल्पोपपन्न और कल्पातीत । स्वर्ग और उनके ऊपर की रचना१८-यह सब निम्नलिखित क्रम से ऊपर २ हैं। १९-सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर, लांतव कापिष्ठ, शुक्र महा शुक्र, सतार सहस्रार, आनत प्राणत और श्रारण अच्युत में कल्पोपपपन्न देव रहते हैं । और नवग्र वेयक के नौ पटल, नौ अनुदिश के एक पटल तथा विजय, वैजयंत, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि नाम के पांच अनुत्तर विमानों के एक पटल में कल्पातीत देव रहते हैं। (यह सब महमिन्द्र कहलाते हैं । ) २०- ऊपर २ के वैमानिकों की आयु, प्रभाव, सुख, धुति, लेश्या की विशुद्धता, इन्द्रिय विषय और अवधि ज्ञान का विषय अधिक २ हैं । २१- किन्तु गमन, शरीर की उच्चता, परिग्रह और अभिमान ऊपर २ के देवों का कम २ है। २२- सौधर्म ईशान में पीत लेश्या; सानत्कुमार माहेन्द्र में पीत पम दोनों ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांतव और कापिष्ठ में पद्म लेश्या; शुक्र, महाशुक्र, सतार और सहस्रार में पद्म शुक्ल दोनों तथा आनत आदि शेष विमानों में शुक्ल लेश्या है । परन्तु अनुदिश और अनुत्तर विमानों में परम शुक्ल लेश्या होती है। २३-अवेयकों से पहिले २ के सोलह स्वर्ग कल्प कहलाते हैं । लौकान्तिक देव२४पांचवें स्वर्ग ब्रह्मलोक के अंत में रहने वाले लौकान्तिक देव कहलाते हैं । २५–इनके आठ भेद होते हैं सारस्वत, आदित्य, वन्हि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, और अरिष्ट । २६-विजय आदि चार विमानों के देव दो जन्म लेकर मोत जाते हैं । .

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