Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari

View full book text
Previous | Next

Page 279
________________ परिशिष्ट न०२ [ २६१ द्रव्यों का अवगाह१२–इन सब द्रव्यों का अवगाह (स्थिति) लोकाकाश में है । १३–धर्म और अधर्म दृष्य सम्पूर्ण लोकाकाश में हैं । १४–पुद्गलों का अवगाह लोक के एक प्रदेश आदि में है । १५—जीवों का अवगाह लोक के असंख्यातवें भाग आदि में है । जीव के छोटे बड़े शरीर को ग्रहण करने का दृष्टान्त१६–जीव के प्रदेश संकोच और विस्तार से दीपक के समान [छोटे बड़े सभी शरीरों में व्याप्त रहते हैं।] द्रव्यों का उपकार१७-धर्म द्रव्य का उपकार जीवों और पुद्गलों को गमन में सहायता देना तथा अधर्म द्रव्य का उपकार स्थिति में सहायता देना है । १८-सब द्रव्यों को जगह देना आकाश द्रव्य का उपकार है । १६-शरीर, वचन, मन और श्वासोच्छवास आदि बनना पुद्गलों का उपकार है। २०-सुख, दुःख, जीना और मरना यह उपकार भी पुद्गलों के ही हैं। २१-जीवों का परस्पर उपकार है। २२-वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व काल द्रव्य के उपकार हैं। पुटुगल द्रव्य का वर्णन-... २३-स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण वाले पुद्गल होते हैं। २४-शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, तम, छाया, पातप (प) और उद्योत सहित भी पुद्गल होते हैं। [सारांश यह है कि यह भी पुदगल की ही पर्यायें होती हैं।] २५-पुद्गलों के दो भेद होते हैं अणु और स्कन्ध । २६ पुद्गलों के स्कन्ध भेद ( टूटने ) और संघात ( जुड़ने ) से उत्पन्न होते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306