Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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परिशिष्ट न०१
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चूलिया विवाहचूलिया अरुणोववाए वरुणोववाए गरुलोववाए धरणोववाए वेसमणोक्वाए वेलंधरोववाए देविंदोववाए उट्ठाणसुए समुठ्ठाणासुए नागपरिआवणिआओ निरयावलिामो कप्पिआमओ कप्पवडिसिआओ पुप्पिाओ पुप्पचूलिआओ वहीदसाओ, एवमाइयाई चउरासीइं पइन्नगसहस्साई भगवओ अरहओ उसहसामिस्स भाइतित्थयरस्स तहा संखिजाइं पइन्नगसहस्साई मज्झिमगाणं जिणवराणं चोइसपइन्नगसहस्साणि भगवओ वद्धमाणसामिस्स, अहवा जस्स जत्तिा सीसा उप्पत्तिाए वेणइआए कम्मियाए पारिणामिआए चउव्विहाए बुद्धीए उववेआ तस्स तत्तिाई पइएणगसहस्साइं; पत्तेअबु. द्वावि तत्तिा चेव, सेत्तं कालिअं, सेत्तं आवस्सयवइरितं, से तं भणंगपविलु।
नन्दी० सूत्र ४४. सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य।
केवलदसणं केवलदंसणिस्स सव्वदव्वेसुअसव्वपजवेसु अ।
अनुयोगद्वार० सूत्र १४४. मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च । अन्नाणे णं भंते! कतिविहे पणते ? गोयमा! तिविहे
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