Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
क्षायिक उपभोग, क्षायिक वीर्य, क्षायिक सम्यक्त्त्व और क्षायिक चारित्र । -क्षायोपशामिक भाव अठारह हैंमतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यय ज्ञान, कुमति, कुश्रुत, विभंग ज्ञान, चक्षुर्दशन, अचक्षुर्दशन, अवधिदर्शन, क्षायोपशमिक दान, क्षायोपशमिक लाभ, क्षायोपशमिक भोग, क्षायोपशमिक उपभोग, क्षायोपशमिक बीय,
क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, सराग चारित्र और संयमासंयम (देशव्रत)। ६--ौदयिक भाव इक्कोस हैं---
मनुष्यगति, देवगति, नरक गति, तिथंच गति, क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसक वेद, मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयम, असिद्धत्व, कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, पीत लेश्या, पद्म
लेश्या और शुक्ल लेश्या । ७–पारिणामिक भाव तीन होते हैं
जीवत्व भव्यत्व और अभव्यत्व । जीव का लक्षण८-जीव का लक्षण उपयोग है। ९-वह उपयोग दो प्रकार का होता है। जिनमें से प्रथम ज्ञानोपयोग आठ
प्रकार का होता है और द्वितीय दर्शनोपयोग चार प्रकार का होता है। जीवों के भेद-- १०–जीव दो प्रकार के होते हैं
संसारी और मुक्त। ११-संसारी जीव समनस्क और अमनस्क दो प्रकार के होते हैं । १२-संसारो जीव त्रस और स्थावर दो प्रकार के होते हैं। १३-स्थावर पांच प्रकार के होते हैं
पृथिवी कायिक, अपकायिक, तेजकायिक, वायुकायिक, और वनस्पतिकायिक। १४-दीन्द्रिय आदि जीव वस होते हैं।