Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तृतीवान्याव:
नरक में नारकियों को शीत लगता है, अत्यन्त गर्मी लगती है, अत्यन्त प्यास लगती है, अत्यन्त भूख लगती है और अत्यन्त भय लगता है। यहां तो केवल दुःख, असाता और अविश्राम ही है। संक्लिष्टाऽसुरोदीरितदुःखाश्च प्राक्चतुर्म्यः ।
प्र०-किं पत्तियं णं भंते! असुरकुमारा देवा तच्चं पुढविं गया य गमिस्संति य?
उ०-गोयमा! पुव्यवेरियस्स वा वेदणउदीरणयाए, पुव्वसंगइस्स वा वेदणउवसामणयाए, एवं खलु असुरकुमारा देवा सच्चं पुढविं गया य, गमिस्संति य ।
व्याख्याप्राप्ति शतक ३, उ० २, स. १४२. छाया- प्र०-कि प्रत्ययं भगवन् ! असुरकुमारा देवास्तृतीयांपृथिवीं गताश्च,
गमिष्यन्ति च । उ०-गौतम! पूर्ववैरिकस्य वा वेदनोदीरणतया, पूर्वसंगतस्य वा वेदनोपशमनतया, एवं खलु असुरकुमाराः देवास्तृतीयां पृथिवीं
गताश्च गमिप्यन्ति च । प्रश्न- भगवन् ! असुरकुमार देव तृतीय पृथिवी तक किस कारण से गये थे जाते हैं तथा किस कारण से जायंगे ?
__उत्तर-गौतम ! पूर्व वैर की वेदना को उदीरणता से तथा पूर्व वेदना को उपशमन करने के लिये असुरकुमार देव तृतीय पृथ्वी तक जाया करते हैं।
तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिशत्सागरोपमा सत्वानां परा स्थितिः।
सागरोवममेगं तु, उक्कोसेण वियाहिया ।'' पढमाए जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥ १६०॥