Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय :
त्रिंशत्तु सागरोपमाणि, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् । अष्टमे जघन्येन, सागरोपमाणामेकोनत्रिंशत् ।। २३९ ।। सागरोपमाणामेकत्रिंशत्तु उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् । नवमे जघन्येन, त्रिंशत्सागरोपमाणि ॥ २४० ॥ त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाणि, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् । चतुर्ष्वपि विजयादिषु, जघन्येनैकत्रिंशत् ॥ २४९ ॥ अजघन्यानुत्कृष्टा, त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि । महाविमाने सर्वार्थे, स्थितिरेषा व्याख्याता ।। २४२ ।।
भाषा टीका - सौधर्म स्वर्ग की जघन्य आयु एक पल्य तथा उत्कृष्ट आयु दो सागर की है | २०० || ईशान स्वर्ग की जघन्य आयु एक पल्य से कुछ अधिक तथा उत्कृष्ट दो सागर से कुछ अधिक है ॥ २२९ ॥ सानत्कुमार स्वर्ग की जघन्य आयु दो सागर तथा उत्कृष्ट आयु सात सागर है || २२२ ॥ माहेन्द्र स्वर्ग की जघन्य आयु दो सागर से कुछ अधिक तथा उत्कृष्ट आयु सात सागर से कुछ अधिक होती है ॥ २२३ ॥ ब्रह्मलोक की जघन्थ आयु सात सागर तथा उत्कृष्ट आयु दश सागर होती है || २२४ ॥ लान्तक में जघन्य आयु दस सागर तथा उत्कृष्ट आयु चौदह सागर होती है || २२५ ॥ महाशुक्र की जघन्य आयु चौदह सागर और उत्कृष्ट आयु सतरह सागर होती है ॥ २२६ ॥ सहस्रार की जघन्य आयु सतरह सागर तथा उत्कृष्ट आयु अठारह सागर होती है || २२७ ॥ आनत स्वर्ग को जघन्य आयु अठारह सागर होती है तथा उत्कृष्ट आयु उन्नीस सागर होती है ।। २२८ ॥ प्राणत स्वर्ग को जघन्य आयु उन्नीस सागर तथा उत्कृष्ट आयु बीस सागर होती है || २२६ || आरण स्वर्ग की जघन्य श्रयु बोस सागर और उत्कृष्ट आयु इक्कीस सागर होती है || २३० ॥ अच्युत स्वर्ग की जघन्य चायु इक्कीस सागर तथा उत्कृष्ट आयु बाईस सागर होती है | २३१ ॥ प्रथम प्रवेयक की जघन्य आयु बाईस सागर की तथा उत्कृष्ट आयु तेईस सागर है || २३२ || दूसरे ग्रैवेयक की जघन्य आयु तेईस सागर तथा उत्कृष्ट आयु चौबीस सागर होती है ॥ २३३ ॥ तीसरे प्रवेयक की जघन्य आयु चौबीस सागर तथा उत्कृष्ट आयु पच्चीस सागर होती है ॥२३४॥ चतुर्थ वैक की जघन्य आयु पच्चीस सागर तथा उत्कृष्ट आयु छब्बीस सागर होती है