Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय :
क्षेत्रों की मर्यादा बांधने वाले कुलाचल पर्वत ( वर्षधर पर्वत ) ग्राम, नगर, घर, पर्वत, पाताल, लोक, नारकी, रत्नप्रभा, शर्करप्रभा, बालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, तमतम प्रभा, सौधर्मस्वर्ग से लगाकर अच्युत स्वर्ग तक, ग्रैवेयक, अनुत्तर, सिद्धशिला ( ईषत्प्रागभार), पुद्गल परमाणु, दो प्रदेश वाले से लगाकर अनन्तप्रदेश वाले तक । इन सबको सादि पारिणामिक कहते हैं । अनादिपारिणामिक किसे कहते हैं ? धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, श्रद्धा समय, लोक, लोक, भव्यत्व, और अभव्यत्व | यह अनादि पारिणामिक भाव । इस प्रकार पारिणामिक भाव का वर्णन किया गया ।
संगति - सूत्र में और आगम में दोनों ही स्थानों पर भावों का अपनी २ अपेक्षा दृष्टि से बड़ा सुन्दर वर्णन किया गया है। सूत्र में भावों को केवल जीव द्रव्य की अपेक्षा से लिया गया है । किन्तु आगम में अजीव द्रव्यों की अपेक्षा का भी ध्यान रक्खा गया है । औपशमिक, क्षायिक, और क्षायोपशमिक केवल जीव के ही हो सकते हैं। तीनों का वर्णन जीव की ही अपेक्षा से किया गया है। श्रदायिक तथा पारिणामिक में जीव और अजीव दोनों ही अपेक्षाओं की गुंजायश होने के कारण दोनों अपेक्षादृष्टियों से वर्णन किया गया है ।
गम के औपशमिक भाव के वर्णन में जितने विशेष भेद दिखलाये हैं सूत्र में सम्यक्त्व तथा चारित्र उनका ही विस्तार हैं, जो कि विस्तार दृष्टि वाले आगम की सुन्दरता का ही कारण है ।
क्षायिक भाव का वर्णन आगम में सिद्धों की अपेक्षा से किया गया है । क्योंकि परम सिद्ध भगवान् ही उत्कृष्ट क्षायिक भाव के धारक हो सकते हैं। आगम में आरम्भ में अर्हन्त भगवान् को भी क्षायिक भाव का धारक माना है और इसी मत का वर्णन सूत्र में किया गया है । अत: इस वर्णन में भी विशेष कथन ही है।
क्षयोपशम केवल कर्मों की सर्वघाती प्रकृतियों का 'हुआ करता है । सर्वघाती प्रकृतियां केवल घातिया कर्मों की कहलाती हैं । अतः आगम तथा सूत्र दोनों ने चारों घातिया कर्मों के क्षयोपशम को ही क्षायोपशमिक भाव माना है । श्रगम में उन भेदों के अवान्तर भेदों का भी वर्णन करके विषय को विस्तार पूर्वक लिखा है ।