Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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सप्तमोऽध्याय:
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भाषा टीका-इच्छा परिमाण व्रत के भी पांच अतिचार जानने चाहिये। उनको कभी न करे। वह यह हैं
१. धनधान्यप्रमाणातिक्रम-किये हुये धन और धान्य (अनाज) के परिमाण को उल्लंघन करना।
२. क्षेत्र वास्तु प्रमाणातिक्रम-किये हुए भूमि तथा गृह आदि के परिमाण का उल्लंघन करना।
३. हिरण्यसुवर्णपरिमाणातिक्रम- किये हुए चांदी सोने के परिमाण का उल्लंघन करना।
४. द्विपदचतुष्पदपरिमाणातिक्रम-किये हुए दासी दास पशु आदि के परिमाण का उल्लंघन करना।
५. कुष्यप्रमाणातिक्रम-किये हुए घर के उपकरणों के परिमाण का उल्लंघन करना ।
ऊर्ध्वाधस्तिर्यगव्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि
दिसिव्वयस्स पंच अइयारा जाणियव्वा । न समायरियव्वा, तं जहा- उड्ढदिसिपरिमाणाइक्कमे, अहोदिसिपरिमाणाइक्कमे, तिरियदिसिपरिमाणाइक्कमे, खेत्तुवुढिस्स, सअंतरड्ढा ।
उपा० अध्या १ छाया- दिव्रतस्य पञ्चातिचाराः ज्ञातव्याः, न समाचरितव्याः, तद्यथा
ऊर्ध्वदिग्परिमाणातिक्रमः, अधोदिग्परिमाणातिक्रम, तिर्यग्दिगप्रमा.
णातिक्रमः, क्षेत्रवृद्धिः, स्मृत्यन्तराधानम् । भाषा टीका-दिग्नत के पांच अतिचार जानने चाहिये । उनको कभी न करे । वह यह हैं-ऊर्ध्व दिशा में जाने को किये हुए परिमाण का उल्लंघन करना, नीचे की दिशा में जाने के लिये किये हुए परिमाण का उल्लंघन करना, तिरछी दिशा में जाने के लिए किये हुए परिमाण का उल्लघंन करना, किये हुए क्षेत्र के परिमाण को बढ़ा लेना, किये हुये परिमाण को भूल जाना।