Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
View full book text
________________
[ १६५
भाषा टीका - चेतन अचेतन रूप परिग्रह में ममत्व परिणाम रूप मूर्छा को परिग्रह कहा गया है ।
सप्तमोऽध्याय:
छाया-
७, १८.
पक्किमामि तिहिं सल्लेहिं - मायासल्लेण नियाण सल्लेणं
मिच्छादंसण सल्लेणं ।
निश्शल्यो व्रती ।
आवश्यक० चतु० आवश्य० सूत्र ७ प्रतिक्रमामि त्रिभिः शल्यैः - मायाशल्येन निदानशल्येन मिध्यादर्शनशल्येन ।
भाषा टीका- मैं तीन शल्यों से प्रतिक्रमण करता हू - माया शल्य से, निदान शल्य से और मिथ्यादर्शन शल्य से । इस प्रकार प्रतिक्रमण करना ही व्रती का लक्षण है ।
गार्य नगारश्च ।
७, १६.
चरितधम्मे दुबिहे पश्नत्ते, तं जहा - आगारचरितधम्मे चेव, अणगारचरितम्मे चेव ।
स्थानांग स्थान २, उ० १. छाया- चारित्रधर्मः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - आगार चारित्रधर्मश्चैवानागारचरित्रधर्मश्चैव ।
आगारधम्मं
भाषा टीका – चारित्र धर्म दो प्रकार का होता है- आगार चारित्रधर्म अथवा गृहस्थ धर्म और अनागार चारित्र धर्म अथवा मुनिधर्म ।
अणुव्रतोऽगारी ।
७, २०.
'अव्वयाई इत्यादि ।
पपातिक सूत्र श्रीवीर देशना.