Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्वार्थ सूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकं प्रमत्तसंयतस्यैव ।
२, ४६.
आहारक सरीरे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे परणते प्रमत्तसंजय समदिट्टि संठा संठिप पण्णत्ते ।
समचउरंस
प्रज्ञापना पद २१ सूत्र २७३.
छाया- आहारकः भगवन्! कतिविधः प्रज्ञप्तः १ गौतम ! एकाकारः प्रज्ञप्तः .. प्रमत्तसंजय सम्यग्दृष्टि:. · समचतुरं स्रसंस्थानसंस्थितः
मज्ञप्तः ।
प्रश्न
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- भगवन् ! आहारक शरीर कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर - गौतम ! आहारक का एक ही आकार होता है । यह प्रमत्त संबत सम्यग्दृष्टि के ही होता है तथा इसका आकार समचतुरस्रसंस्थान रूप होता है ।
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नारकसम्मूच्छिनो नपुंसकानि ।
२. ५०.
तिविहा नपुंसगा पण्णत्ता, तं जहा - रतियनपुंसगा तिरिक्खजोणियनपुंसगा मणुस्सनपुंसगा ।
स्थानांग स्थान ३ उद्दे० १ सूत्र १३१. छाया-- त्रिविधानि नपुंसकानि मझप्तानि तद्यथा - नारकनपुंसकानि, तिर्यग्योनिनपुंसकानि मनुष्य नपुंसकानि ।
भाषा टीका – नपुंसक तीन प्रकार के होते हैं - नारक नपुंसक, तिर्यच नपुंसक और मनुष्य नपुंसक |
न देवाः ।
२. ५१.
असुरकुमारा यणं भंते! किं इत्थीवेया पुरिसवेया नपुंसग