Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
उत्तरा० अध्यन ३६.
पलिओवममेगं तु, वासलक्खेण साहियं । पलिओवमट्ठभागो, जोइसेसु जहन्निया ॥ २१६ ॥ छाया- पल्योपममेकं तु, वर्षलक्षेण साधिकम् ।
पल्योपमस्याष्टमभागः, ज्योतिषकेषु जघन्यिका ॥ २१९ ॥ भाषा टीका-ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट श्रायु एक लाख वर्ष अधिक एक पल्य होती है। और जघन्य आयु पल्य का आठवां भाग प्रमाण होती है।
लौकान्तिकानामष्टौ सागरोपमाणि सर्वेषाम् ।
लोगंतिकदेवाणं जहएणमणुक्कोसेणं अट्ठसागरोवमाई ठिती पण्णत्ता।
स्थानांग स्थान ८ सूत्र ६२३.
व्याख्याप्रज्ञप्ति शतक ६ उद्देश्य ५. छाया- लौकान्तिकदेवानां जघन्यानुत्करेंण अष्टसागरोपमा स्थितिः
प्रज्ञप्ता। भाषा टोका-लौकान्तिक देवों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति आठ सागर होती है।
संगति-इन सब पत्रों में आगमों से नाम मात्र का ही अन्तर है। कई स्थलों पर तो शब्द २ मिलते हैं।
इति श्री-जैनमुनि-उपा'याय-श्रीमदात्माराम-महाराज-संगृहीते
तत्त्वार्थसूरजैनाऽऽगमसमन्वये * चतुर्थाध्याय समाप्तः॥ ४ ॥