Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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परिशिष्ट नं०२
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१५--बहुत प्रारम्भ करने और बहुत परिग्रह रखने से नरक आयु कर्म का
आसव होता है । १६--कुटिल स्वभाव रखने से तिर्यच आयु कर्म का पासव होता है। १७--थोड़ा प्रारम्भ करने और थोड़ा परिग्रह रखने से मनुष्य प्रायु का पासव
होता है। १८-स्वाभाविक कोमलता से भी मनुष्य आयु का पासूव होता है । १९–सातों शील तथा अहिंसा आदि पांचों व्रतों का पालन न करने से
चारों गतियों का आस्रव होता है। २०-सरागसंयम, संयमासंयम ( देशवत ) काम निर्जरा और बालतप से
देव आयु कर्म का आसूव होता है । २१–सम्यग्दर्शन भी देव आयु का कारण है । २२-मन, वचन और काय के योगों की कुटिलता और अन्यथा प्रवृत्ति से
अशुभ नाम कर्म का पासव होता है । २३-इसके विपरीत मन, वचन और काय की सरलता और विसंवाद न करने
से शुभ नाम कर्म का पासव होता हैं। २४--१ दर्शन विशुद्धि, २ विनयसम्पन्नता ३ शीलों और व्रतों का अतिचार रहित
पालन करना, ४ निरन्तर ज्ञान के अभ्यास में रहना, ५ संसार के दुखों से भयभीत होना ६ शक्ति अनुसार दान करना, ७ शक्ति अनुसार तप करना ८ मुनियों की सेवा करना, ६ रोगी मुनियों की परिचर्या करना, १० अर्हद्भक्ति ११ आचार्य भक्ति, १२ बहुश्रुत भक्ति, १३ प्रवचन भक्ति, १४ सामायिक स्तवन, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग इन छह आवश्यकीय कियाओं में कमी न करना, १५ जैनधर्म का प्रचार करने रूप मार्गप्रभावना और १६ सहधर्मी जन से अत्यन्त प्रेम मानना—यह सोलह
भावनाएं तीर्थंकर प्रकृति के मासूव का कारण हैं । २५–पर की निन्दा करने, अपनी प्रशंसा करने, पर के विद्यमान गुणों को