Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः
छाया- द्वौ पथायुष्कं पालयतः देवानां चैव नैरयिकाणाञ्चैव। .
देवाः नैरयिकारपि च असंख्यवर्षाऽऽयुष्काश्च तिर्यग्मनुष्याः॥
उत्तमपुरुषाश्च तथा चरमशरीराश्च निरुपक्रमाः॥ भाषा टीका -दो की पूर्ण भायु होती है-देवों की और नारकियों की । देव, नारको, भोगभूमि वाले तिर्यच और मनुष्य, उत्तम पुरुष और घरमशरीरियों की बंधी हुई वायु नहीं घटती।
___ संगति- इन सभी भागम वाक्यों का सूत्र वाक्यों के साथ केवल मात्र शाब्दिक भेद है।
इति श्री-जैनमुनि-उपाध्याय-श्रीमदात्माराम महाराज-संगृहीते
तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयेः द्वितीयाऽध्यायः समाप्तः॥२॥