Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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भाषा टीका - उस संवर के समिति, गुप्ति, धर्म, अनुप्र ेक्षा, परिषहजय और चारित्र यह भेद होते हैं । जिनके क्रमश: पांच, तीन, दश, बारह, बाईस, और पांच भेदों को जोड़ने से संवर के कुल सत्तावन भेद होते हैं ।
पापकर्मों के नष्ट हो जाने पर व्रती के करोड़ जन्मों के संचित कर्मों की भी तपसे निर्जरा होजाती है ।
नवमोऽब्याय :
सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः ।
९, ४.
गुत्ती नियत्तणे बुत्ता, अभत्थेसु सव्वसो ।
उत्तराध्ययना० २४ गाथा २६.
छाया
गुप्तयो निर्वतने उक्ताः, अशुभार्थेभ्यः सर्वेभ्यः ।
भाषा टीका - सभी अशुभ अर्थों (प्रयोजनों) से [ मन वचन काय के ] रोकने को गुप्त कहा गया है।
ईर्याभाषैषणाऽऽदान निक्षेपोत्सर्गाः समितयः ।
९, ५.
पंच समिईओ पण्णत्ता, तं जहा - ईरियासमिई भासासमिई एसणासमिई आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिई उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियास मिई ।
समवायांग समवाय ५.
छाया- पञ्च समितयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - ईर्यासमितिः भाषासमितिः एषणासमितिः आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणासमितिः उच्चारप्रस्रवणखेल सिघाणजलपरिष्ठापणासमितिः ।
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भाषा टीका – समिति पांच होती हैं – ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानभन्डमात्र निक्षेपणसमिति ( श्रादन निक्षेपण समिति ), उच्चार * प्रस्रवण + खेल + सिंघारण || जलपरिष्ठापणा \ समिति ( प्रतिष्ठापणा अथवा उत्सर्ग समिति )
* पुरीष, + मूत्र + निष्ठोवन अथवा थूक, || नाकमैल, 8 गिराना या डालना ।