Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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परिशिष्ट नं०२
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पांच शरीर३६--औदारिक, वैक्रियिका, आहारकः, तैजस और कार्मण। यह पांच शरीर
होते हैं। ३७–अगले २ शरीर पहिले २ से सूक्ष्म २ हैं । अर्थात् मौदारिक से वैक्रियिक
सूक्ष्म है, वैक्रियिक से आहारक सूक्ष्म है, आहारक से तैजस और तैजस
से कार्मण शरीर सूक्ष्म है। ३८---किन्तु प्रदेशों+ ( परमाणुओं) की अपेक्षा तैजस से पहिले पहिले के शरीर
असंख्यात गुणे हैं । अर्थात् मौदारिक से वैक्रियिक शरीर में असंख्यात गुणे
परमाणु हैं, और वैक्रियिक से माहारक शरीर में असंख्यात गुणे परमाणु हैं। ३९-शेष के दो शरीर-तैजस और कार्मण अनंत गुणे परमाणु वाले हैं। अर्थात्
आहारक से तैजस में अनंत गुणे परमाणु हैं, और तैजस से कार्माण शरीर
में अनन्त गुणे परमाणु हैं। ४०-तैजस और कार्माण यह दोनों ही शरीर अप्रतीघात हैं। अर्थात् अन्य मूर्तिमान ___ पुद्गल आदि से रुकते नहीं हैं।
* स्थूल अर्थात् प्रधान शरीर को औदारिक शरीर कहते हैं।
+ जिसमें अनेक प्रकार के स्थूल, सूक्ष्म, हलका, भारी, आदि विकार होने संभव हों उसे वैक्रियिक शरीर कहते हैं ।
* सूक्ष्म पदार्थ के निर्णय के लिये छटे गुणस्थान वाले मुनियों के शरीर प्रगट होने वाले शरीर को आहारक शरीर कहते हैं।
$ जिससे शरीर में तेज शक्ति होती है उसे तैजस शरीर कहते हैं। ॥ ज्ञानावरण भादि अष्टकर्मों के समूह को कार्माण शरोर कहते हैं ।
+ आकाश के जितने प्रदेश को पुद्गल का अविभागी परमाणु घेरे उसे प्रदेश कहते हैं । जिस प्रकार मूर्तिक द्रव्य (पुद्गल) के छोटे बड़े पने का अंदाज परमाणुओं से बतलाया जाता है, उसी प्रकार अमूर्तिक द्रव्यों (जीव, धर्म, अधर्म, आकाश और काल) का अंदाज प्रदेशों से लगाया जाता है। यहां सूक्ष्म होने के कारण इन शरीरों का अंदाजा भी प्रदेशों से ही लगाया गया है। यद्यपि शरीर नाम कर्म के द्वारा रचना होने से यह शरीर भी पौद्गलिक ही हैं।