Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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द्वितीयाध्यायः
उत्तर – गौतम ! जिसके वैक्रियिक हो उसके भाहारक नहीं होता । जिसके आहारक हो उसके वैक्रियिक शरीर नहीं होता।
तैजस और कार्मण शरीर भौदारिक वाले के समान वैक्रियिक पाले के भी होते हैं, बाहारक शरीर वाले के साथ भी तैजस कार्मण होते हैं।
प्रश्न - भगवन् ! क्या तैजस शरीर वाले के कार्मण शरीर होता है और कार्मण शरीर वाले के तैजस शरीर होता है ?
उत्तर – गौतम ! तैजस वाले के कार्मण शरीर नियम से होता है और कार्मण बाले के तैजस शरीर नियम से होता है। निरुपभोगमन्त्यम्।
२, ४४. विग्गहगइसमावन्नगाणं नेरइयाणं दोसरीरा पण्णत्ता, तं जहा-तेयए चेव कम्मए चेव । निरंतरं जाव वेमाबियाणं ।
स्थानांग स्थान २ उद्दे० १ सूत्र ७६. जीवे णं भंते! गम्भं वकममाणे किं ससरीरी वक्कमइ, असरीरीवकमइ ? गोयमा! सिय ससरीरी वक्कमइ सिय असरीरी वकमइ । से केणतुणं? गोयमा ! ओरालियवेउब्धिय-आहारयाई पडुच्च भसरीरी वकमइ। तेयाकम्माइं पड्डच्च ससरीरी धक्कमइ।
भगवती० शतक १ उद्दे० ७. छाया
विग्रहगतिसमापनकानां नैरयिकानां द्विशरीरे प्रज्ञप्ते, तद्यथा - तैजसश्चैव, कार्मणञ्चैव, निरंतरं यावत् वैमानिकानां । जीवो भगवन् ! गर्भ व्युत्क्रामन् किं सशरीरी व्युत्क्रामति, अशरीरी व्युत्क्रामति ? गौतम ! स्यात् सशरीरी व्युत्क्रामति स्यात् अशरीरी व्युत्क्रामति । तत् केनार्थेन ? गौतम ! औदारिक-चैक्रियिक-आहारकाणि प्रतीत्य अशरीरी व्युत्क्रामति । तैजसकामणे प्रतीत्य सशरीरी व्युत्क्रामति ।