Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
पंच गियंठा पन्नत्ता, तं जहा - पुलाए बउसे कुसीले यिंठे
सिखाए ।
व्याख्याप्रज्ञप्ति श० २५, ०५, सु० ७५१.
पश्च निर्ग्रन्थाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - पुलाक: बकुश: कुशीलः, निर्ग्रन्थः स्नातकः ।
भाषा टीका – निथ पांच प्रकार के कहे गये हैं:- पुलाक, बकुश, कुशील, न और स्नातक |
अब इन्हीं के अन्य भेद भी कहे जाते हैं:
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छाया
संयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिङ्गलेश्योपपादस्थानविकल्पतः साध्याः ।
पडि सेवा गाणे तिथे लिंग-खेत्ते काल गइ संजम "
लेसा ।
व्याख्याप्रज्ञप्ति श० २५, उ०५, सू० ७५१.
छाया
परिसेवना ज्ञानं तीर्थः लिङ्गः क्षेत्रः कालः गतिः संयमः लेश्या । भाषा टीका – परिसेवना (प्रतिसेवना) ज्ञान (श्रुत ), तीर्थ, लिङ्ग, क्षेत्र (स्थान), काल, गति ( उपपाद ), संयम और लेश्या [ के भेदों से भी विचार करे ]
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६,४७.
संगति - आगम तथा सूत्र के शब्दों में नाम मात्र का ही अन्तर है । आगम में इन भेदों को विस्तार दृष्टि से छत्तीस प्रकार का बतलाया गया है, जिन में सूत्र के योग्य यहां ये गये हैं।
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इति श्री - जैन मुनि - उपाध्याय - श्रीमदात्माराम - महाराज - संगृहीते तत्वार्थसूत्र जैनाऽऽगमसमन्वये
* नवमोऽध्यायः समाप्तः ॥ ६॥
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