Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
शीत, उष्ण, दंशमशक ), चर्या, शय्या, बध, रोग, तृणस्पर्श और मल ( जल्ल ), ये ग्यारह
वेदनीय में गिनी जाती हैं
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प्रश्न
- भगवन् ! दर्शनमोहनीय कर्म में कितनी परीषह होती हैं ? उत्तर - गौतम ! एक दर्शनपरीषह ही गिनी जाती है ।
प्रश्न
- भगवन् ! चारित्रमोहनीय कर्म में कितनी परीषह होती हैं ?
—
उत्तर - गौतम ! सात परीषद होती हैं - अरति, अचेल, स्त्री, निषद्या, याचना,
आक्रोश और सत्कारपुरस्कार, यह सात चारित्रमोहनीय में होती हैं ।
- भगवन् ! अन्तराय कर्म में कितनी परीषह होती हैं ?
प्रश्न -
उत्तर
प्रश्न
- गौतम ! केवल एक अलाभ परीषह होती है ।
-
—
- भगवन् ! सात प्रकार के बन्धवालों के कितनी परीषह होती हैं ?
उत्तर
-
- गौतम ! बाईसों परीषह होती हैं । किन्तु एक काल में अनुभव बीस परीषह का होता है । जिस समय में शोतपरीषह होती है उस समय उष्णपरीषह नहीं होती । जिस समय उष्णपरीषह होती है उस समय शीतपरीषह नहीं होती । जिस समय चर्यापरीषह की वेदना होती है उस समय निषद्या परीषह नहीं होती । जिस समय निषद्या परीषह होती है उस समय चर्या परीषह नहीं होती ।
प्रश्न - - भगवन् ! आठ प्रकार के बन्ध वालों के कितनी परीषह होती हैं ?
-
उत्तर - गौतम ! बाईसों परीषह ही होती हैं – दुधापरीषह, तृषा परीषह, शीत परीषद, दंशपरीषह, और मशकपरोषह से लगा कर अलाभ परीषह तक। इसी प्रकार आठ प्रकार के बंधवालों के तथा सात प्रकार के बन्धवालों के होती हैं।
प्रश्न - भगवन् ! छह प्रकार के बंधवाले सरागछद्मस्थ के कितनी परीषह कही गई हैं। ?
उत्तर - गौतम ! चौदह परीषह कही गई हैं और बारह परीषहों का एक साथ अनुभव होता है । जिस समय शीत परीषह होती है उस समय उष्णपरीषह नहीं होती, जिस समय उष्णपरीषह होती है उस समय शीतपरीषह नहीं होती । जिस समय चर्चा परीषह होती है उस समय शय्यापरीषह नहीं होती, जिस समय शय्या परीषह होती है उस समय चर्या परोषह नहीं होती ।