Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्त्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वय :
___ संगति-आगम तथा सूत्र में ज्योतिष्क देवों के सम्बन्ध में थोड़ा मत भेद है। सूत्रों में भुवनवासी तथा व्यतरों के समान ज्योतिष्कों में भी चार लेश्या मानी हैं। किन्तु आगम ग्रन्थ ज्योतिष्कों में कृष्ण, नील, और कापोत का अस्तित्व न मानकर उनमें केवल चौथी पीतलेश्या ही मानते हैं। इसलिये यह विषय विद्वानों के विचारने योग्य है। दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः ।
४, ३. . भवणवई दसविहा पण्णता' वाणमन्तरा अट्ठविहा पण्णता,... 'जोइसिया पंचविहा पन्नत्ता'.......'वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-कप्पोपवण्णगा य कप्पाइया य । से कि तं कप्पोपवण्णगा ? बारसविहा पण्णत्ता, तं जहा - सोहम्मा, ईसाणा, सणंकुमारा, माहिंदा, बंभलोगा, लंतया, महासुक्का सहस्सारा, आणया, पाणया, आरणा, अच्चुत्ता।
प्रज्ञापना प्रथम पद देवाधिकार छाया- भुवनपतयः दशविधाः प्रज्ञप्ताः "वाणमंतराः अष्टविधा प्रज्ञप्ताः
......''ज्योतिष्काः पश्वविधाः प्रज्ञप्ताः । वैमानिकौ द्विविधौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा-कल्पोपनकाच कल्पातीताश्च । अथ किं तत् कल्पोपपन्नकाः! द्वादशविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - सौधर्माः ईशानाः सनत्कुमाराः माहेन्द्राः ब्रह्मलोकाः लान्तकाः महाशुक्राः सहस्राराः
आनताः प्राणताः आरणाः अच्युताः । भाषा टीका-भुवनवासी दस प्रकार के होते हैं। व्यंतर आठ प्रकार के होते हैं । ज्योतिष्क पांच प्रकार के होते हैं और वैमानिक दो प्रकार के होते हैं। वैमानिकों के दो भेद यह हैं-कल्पोपपन्न और कल्पातीत ।
प्रश्न-कल्पोपपन्न किनको कहते हैं ?
उत्तर-कल्पोपपन्न बारह प्रकार के होते हैं-वह यह हैं-सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत ।