Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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परिशिष्ट न०२
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१९--इन छहों कमलों में निम्नलिखत छै देवियां सामानिक और पारिषद्
के देवों सहित निवास करती हैंश्री, ही, धति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ।
इनकी आयु एक २ पल्य की होती है । २०-उन सातों क्षेत्रों में क्रमशः दो २ के जोड़े से निम्नलिखित चौदह
नदियां बहती हैं-- गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहतास्या, हरित, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा,
नारो, नरकान्ता, सुवर्णकूला, रूप्यकूला, रक्ता और रक्तोदा । २१--इन सात युगल में से पहली २ नदियां पूर्व की ओर जाती हुई पूर्व
समुद्र में मिलतो हैं। २२--और शेष सात नदियां पश्चिम की ओर जाती हुई पश्चिम के समुद्र
में मिलती हैं। २३--गंगा सिन्धु आदि नदियां चौदह २ हज़ार नदियों के परिवार सहित
हैं। अर्थात् इनकी चौदह २ हजार सहायक नदियां हैं। २४-भरत क्षेत्र का उत्तर दक्षिण विस्तार पांच सौ छब्बीस सही छै बटा उन्नीस
(५२६३) योजन है। २५–भरतक्षेत्र से आगे विदेह क्षेत्र तक पर्वत और क्षेत्र दुगुने २ विस्तार
वाले हैं। २६-विदेह क्षेत्र से उत्तर के तीन पर्वत और तीन क्षेत्र विदेह क्षेत्र से
दक्षिण के पर्वतों और क्षेत्रों के बराबर विस्तार वाले हैं। २७-इनमें से भरत और ऐरावत क्षेत्र में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के __ छै २ कालों में [ प्राणियों के आयु, काय, भोग, उपभोग, सम्पदा, वीर्य,
और बुद्धि प्रादि ] बढ़ते और घटते रहते हैं। २८-उन भरत और ऐरावत के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों की पांच पृथिवी ज्यों की
त्यों नित्य हैं। अर्थात् उनमें कालचक्र की हानि और वृद्धि नहीं होती।