Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari

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Page 243
________________ नवमोऽध्याय: [ २२५ सजोगिकेवलिखीण कसायवीयरायचरितारिया य अजोगि केवलिखीणक सायवीयरायचरितारिया य । प्रज्ञापना सूत्र पद १ चारित्रार्यविषय | छाया - सूक्ष्मसाम्परायसरागचरित्रार्याश्च बादरसाम्परायसरागचरित्रार्याश्च । उपशान्तकषायवीतरागचरित्रार्याश्च क्षीणकषायवीतरागचरित्रार्याश्च । 1 सयोगिकेवलक्षीणकषायवीतरागचरित्रार्याश्च । प्रयोगिकेवलिक्षीकषायवीतरागचरित्रार्याश्च । भाषा टीका सूक्ष्मसाम्पराय सरागचारित्र वाले आर्य, बादरसाम्परायसरागचारित्र वाले आर्य, उपशान्तकषाय वीतरागचारित्र वाले आर्य, क्षीणकषाय वीतरागचारित्र वाले आर्य, सयोगिकेवलि क्षीणकषाय वीतरागचारित्र वाले आर्य, और अयोगिकेवल क्षीणकषाय वीतरागचारित्र वाले आर्य के [ यह शुक्ल ध्यान होते हैं । ] ( संगति) इस कथन से प्रगट है कि पृथक्त्ववितर्क नामका प्रथम शुक्ल ध्यान मन, वचन और काय इन तीनों योगों के धारक के होता है। दूसरा एकत्ववितर्क नामका शुक्ल ध्यान तीनों में से किसी एक योगवाले के होता है । तीसरा सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति नामका ध्यान काययोग वालों के ही होता है और चौथा व्युपरतक्रियानिविर्ति नामका ध्यान योगकेवली के ही होता है। प्रथम के दो ध्यानों के विशेष रूप से जानने के लिये सूत्र कहे जाते हैं एकाश्रये सवितर्कविचारे पूर्वे । ९, ४१. विचारं द्वितीयम् । वितर्कः श्रुतम् । विचारो ऽर्थव्यञ्जनयोगसंक्रान्तिः । ६, ४३. ४४. ९, ४२.

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