Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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चतुर्थाऽध्यायः
देवाश्चतुर्णिकायाः ।
४, १
चउव्विहा देवा पण्णत्ता, तं जहा - भवणवई वाणमंतर
जोइस वेमाणिया ।
छाया
चतुर्विधाः देवाः प्रज्ञप्ताः, ज्योतिषकाः वैमानिकाः ।
भाषा टीका - देव चार प्रकार के होते हैं—भुवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और
वैमानिक |
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व्याख्याप्रज्ञप्ति शतक २ उद्देश्य ७
वारणमन्तराः
संगति – यहां आगम वाक्य और सूत्र में कुछ अन्तर नहीं है। केवल व्यन्तर का नाम आगम में वाणमन्तर दिया गया है, जो केवल शाब्दिक भेद है ।
आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्या ।
भवनवइवाणमंतर याणं एगा तेउलेसा'
तद्यथा – भुवनपतयः
-
छाया
"जोतिसि
चत्तारि लेस्साओ 'वेमाणियाणं तिन्नि उवरिमलेसाओ ।
स्थानांग स्थान १ सूत्र ५१ ज्योतिषकाणां एका
भुवनपतिवारणमन्तरयोः चतस्रः लेश्या तेजोलेश्या (पीतलेश्या) वैमानिकानां तिस्रः उपरिमलेश्याः ।
-भाषा टीका – भुवनवासी और व्यन्तरों के चार लेश्या (कृष्ण, नील, कापोत और पीत) होती हैं। ज्योतिष्कों के अकेली पीत लेश्या होती है और वैमानिकों के ऊपर की तीन लेश्या (पीत, पद्म, और शुक्ल ) होती हैं।
४, २