Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तृतीयाध्याय:
[ ८५
छाया- जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ वर्षवर्षधराणां महाविदेहपर्यन्तं द्विगुणद्विगुणविस्तार
वर्णितः पश्यन्तु उक्तसूत्रं वर्षाधिकारे चतुर्थवक्षस्कारे । भाषा टीका-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में महाविदेह क्षेत्र तक के क्षेत्र और पर्वतों का विस्तार पूर्व २ से दुगुना २ बतलाया गया है। वर्षाधिकार ४ थे वक्षष्कार में इस प्रकरण का बड़े बिस्तार से वर्णन किया गया है। उत्तरा दक्षिणतुल्याः।
३, २६. जंबुमंदरस्स पव्वयस्स य उत्तरदाहिणे गं दो वासहरपव्वया बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नं णातिवदृति भायामविक्खंभुचतोव्वेहसंठाणपरिणाहेणं, तं जहा-चुल्लहिमवंते चेव सिहरिच्छेव, एवं महाहिमवंते चेव रुप्पिञ्चेव, एवं पिसढे चेव णीलवंते चेव इत्यादि।
स्थानांग स्थान २ उद्देश्य २ सूत्र ८७ छाया- जम्बूमन्दिरस्य पर्वतस्य च उत्तरदक्षिणयोः द्वौ वर्षधरपर्वतौ बहु
समतुल्यौ अविशेषौ अनानात्वौ अन्योन्यं नातिवर्तन्ते भायामविष्कम्भोचतोद्वेधसंस्थानपरिणाहेन, तद्यथा-क्षुद्रकहिमवान् चैव शिखरी चैव, एवं महाहिमवान् चैव रुक्मिश्चैव, एवं निषिधश्चैव नीलवन्त
श्चैव । इत्यादि। भाषा टीका-सुमेरु पर्वत के उत्तर तथा दक्षिण में दो पर्वत सब प्रकार से बराबर २ हैं। वह सामान्य रूप से एक से हैं। तथा लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, रचना तथा परिणाह से भिन्न २ नहीं है । समानवा इस प्रकार है-क्षुद्रहिमवान् और शिखरी बराबर २ हैं। महाहिमवान् तथा रुक्मि बराबर २ हैं। तथा निषिध और नील पर्वत समान हैं। इत्यादि।
भरतैरावतयोवृदिह्रासौ षट्समयाभ्यामु