Book Title: Digvijaya Mahakavya
Author(s): Meghvijay, Ambalal P Shah
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 17
________________ ४६ सिंघी जैन ग्रन्थ माला ज्यॉग्रॉफिकल सोसायटी न्युयार्क, बंगीय साहित्यपरिषद् कलकत्ता, न्युमेस्मेटिक सोसायटी ऑफ इन्डिया विगेरे अनेक प्रसिद्ध संस्थाओना तेओ उत्साही सभासद हता. साहित्य अने शिक्षण विषयक प्रवृत्ति करनारी जैन तेम ज जैनेतर अनेक संस्थाओने तेमणे मुक्त मने दान आपी ए विषयोना प्रसारमा पोतानी उत्कट अभिरुचिनो उत्तम परिचय आप्यो हतो. तेमणे आवी रीते केट-केटली संस्थाओने आर्थिक सहायता आपी हती तेनी संपूर्ण यादी मळी शकी नथी. तेमनो खभाव आवां कार्योमां प्रायः मौन धारण करवानो हतो अने ए माटे पोतानी प्रसिद्धि करवानी तेओ आकांक्षा होता राखता. तेमनी साथे कोई वखते प्रसंगोचित वार्तालाप थतां आवी बाबतनी जे आडकतरी माहिती मळी शकी तेना आधारे तेमनी पासेथी आर्थिक सहायता मेळवनारी केटलीक संस्थाओनां नामो विगेरे आ प्रमाणे जाणी शकायां छहिंदु ऐकेडेमी, दोलतपुर (बंगाल), रु० १५०००) कलकत्ता-मुर्शिदाबादना जैन मन्दिरो, ११०००) तरक्की-उर्दू बंगाला, ५०००) __ जैनधर्म प्रचारक सभा, मानभूम, ५०००) हिंदी साहित्य परिषद् भवन ( इलाहाबाद ), १२५००) जैन भवन, कलकत्ता, १५०००) विशुद्धानंद सरस्वती मारवाडी हॉस्पीटल, कलकत्ता, १००००) जैन पुस्तक प्रचार मंडल, आगरा, ७५००) एक मेटर्निटीहोम, कलकत्ता, २५००) जैन मन्दिर, आगरा, ३५००) बनारस हिंदु युनिवर्सिटी, २५००) जैन हाईस्कूल, अंबाला, २१००) जीयागंज हाइस्कूल, ५०००) जैन गुरुकुळ, पालीताणा, ११०००) जीयागंज लंडनमिशन हॉस्पीटल, ६०००) जैन प्राकृत् कोष माटे, २५००) ए उपरांत हजार-हजार पांचसो-पांचसोनी नानी रकमो तो तेमणे सेंकडोनी संख्यामां आपी छे जेनो सरवाळो लाख-दोढ लाख जेटलो थवा जाय. साहित्य अने शिक्षणनी प्रगति माटे सिंघीजीनो जेटलो उत्साह अने उद्योग हतो तेटलो ज सामाजिक प्रगति माटे पण ते हतो. अनेकवार तेमणे आवी सामाजिक सभाओ विगेरेमा प्रमुख तरीके भाग लईने पोतानो ए विषेनो आन्तरिक उत्साह अने सहकारभाव प्रदर्शित को हतो. जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्सना सन् १९२६ मां मुबईमा भराएला खास अधिवेशनना तेओ प्रमुख बन्या हता. उदयपुर राज्यमां आवेला केशरीयाजी तीर्थना वहीवटना विषयमा स्टेट साथे जे झघडो उभो थयो हतो तेमां तेमणे सौथी वधारे तन, मन अने धननो भोग आप्यो हतो. आ रीते तेओ जैन समाजना हितनी प्रवृत्तियोमा यथायोग्य संपूर्ण सहयोग आपता हता परंतु ते साथे तेओ सामाजिक मूढता अने सांप्रदायिक कट्टरताना पण पूर्ण विरोधी हता. बीजा बीजा धनवानो के आगेवानो गणाता रूढीभक्त जैनोनी माफक तेओ संकीर्ण मनोवृत्ति के अन्धश्रद्धा पोषक विकृत भक्तिथी सर्वथा पर हता. आचार, विचार के व्यवहारमा तेओ बहु ज उदार अने विवेकशील हता. . तेमन गृहस्थ तरीकेन जीवन पण बहु ज सादं अने सात्त्विक हतुं. बंगालना जे जातना नवाबी गणाता वातावरणमां तेओ जन्म्या हता अने उछा हता ते वातावरणनी तेमना जीवन उपर कशी जखराब असर थई न हती अने तेओ लगभग ए वातावरणथी तद्दन अलिप्त जेवा हता. आटला मोटा श्रीमान् होवा छतां, श्रीमंताइना खोटा विलास के मोटा आडंबरथी तेओ सदा दूर रहेता हता. दुर्व्यय अने दुर्व्यसन प्रत्ये तेमनो भारे तिरस्कार हतो. तेमनी स्थितिना धनवानो ज्यारे पोताना मोज-शोख, आनन्द-प्रमोद, विलास-प्रवास, समारंभ-महोत्सव इत्यादिमां लाखो रुपीया उडावता होय छे त्यारे सिंघीजी तेनाथी तद्दन विमुख रहेता हता. तेमने शोख मात्र सारा वाचननो अने कलामय वस्तुओ जोवा-संग्रहबानो हतो. ज्यारे जुओ त्यारे, तेओ पोतानी गादी उपर बेठा बेठा साहित्य, इतिहास, स्थापत्य, चित्र, विज्ञान, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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