Book Title: Digvijaya Mahakavya
Author(s): Meghvijay, Ambalal P Shah
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 16
________________ स्व० बाबू श्री बहादूर सिंहजी सिंघी Fa नामे बाबू ब्रजलाल अधिकारी - जेओ योगविषयक प्रक्रियाना अच्छा अभ्यासी अने तत्त्वचिंतक हता - तेमना सहवासथी बाबू डालचंदजीने पण योगनी प्रक्रिया तरफ खूब रुचि थई गई हती अने तेथी तेमणे तेमनी पासेथी ए विषयनी केटलीक खास प्रक्रियाओनो ऊंडो अभ्यास पण कर्यो हतो. शारीरिक स्वास्थ्य अने मानसिक पावित्र्यनो जेनाथी विकास थाय एवी, केटलीक व्यावहारिक जीवनने अत्यंत उपयोगी यौगिक प्रक्रियाओनो तेमणे पोताना पत्नी तेम ज पुत्र-पुत्री आदिने पण अभ्यास करवानी प्रेरणा करी हती. जैन धर्मना विशुद्ध तत्त्वोना प्रचार अने सर्वोपयोगी जैन साहित्यना प्रसार माटे पण तेमने खास रुचि रहेती हती अने पंडितप्रवर सुखलालजीना परिचयमां आव्या पछी, ए कार्य माटे कांईक विशेष सक्रिय प्रयत्न करवानी तेमनी सारी उत्कंठा जागी हती. कलकत्तामा २-४ लाखना खर्चे आ कार्य करनारुं कोई साहित्यिक के शैक्षणिक केन्द्र स्थापि करवानी योजना तेओ विचारी रह्या हता, ए दरम्यान सन् १९२७ ( वि. सं. १९८४ ) मां कलकत्तामां तेमनो स्वर्गवास यो. बाबू डालचंदजी सिंघी, पोताना समयना बंगाल निवासी जैन समाजमां एक अत्यंत प्रतिष्ठित व्यापारी, दीर्घदर्शी उद्योगपति, मोटा जमीनदार, उदारचित्त सद्गृहस्थ अने साधुचरित सत्पुरुष हता. तेओ पोतानी ए सर्व संपत्ति अने गुणावत्तानो समग्र वारसो पोताना एक मात्र पुत्र बाबू बहादुर सिंहजी ने सोंपता गया, जेमणे पोताना पुण्यश्लोक पितानी स्थूल संपत्ति अने सूक्ष्म सत्कीर्ति बनेने घणी सुंदर रीते वधारीने पिता करतांय सवाई श्रेष्ठता मेळवावानी विशिष्ट प्रतिष्ठा प्राप्त करी. - बाबू श्री बहादुर सिंहजीमां पोताना पितानी व्यापारिक कुशळता, व्यावहारिक निपुणता अने सांस्कारिक सन्निष्ठा तो संपूर्ण अंशे वारसागतरूपे उतरेली हती ज परंतु ते उपरांत तेमनामां बौद्धिक विशदता, कलात्मक रसिकता अने विविध विषय ग्राहिणी प्राञ्जल प्रतिभानो पण उच्च प्रकारनो सन्निवेश भयो हतो अने तेथी तेओ एक असाधारण व्यक्तित्व धरावनार महानुभावोनी पंक्तिमा स्थान प्राप्त करवानी योग्यता मेळत्री शक्या हता. तेओ पोताना पिताना एक मात्र पुत्र होवाथी तेमने पिताना विशाळ कारभारमां नानपणथी ज लक्ष्य आपवानी फरज पडी हती अने तेथी तेओ हाईस्कूलनो अभ्यास पूरो करवा सिवाय कॉलेजनो विशेष अभ्यास करवानो अवसर मेळवी शक्या न हता. छतां तेमनी ज्ञानरुचि बहु ज तीव्र होवाथी, तेमणे पोतानी मेळे जं, विविध प्रकारना वांचननो अभ्यास खूब ज वधायें तो अने तेथी तेओ इंग्रेजी उपरांत, बंगाली, हिंदी, गुजराती भाषाओ पण खूब सरस जाणता हता अने ए भाषाओमां लखाएलां विविध पुस्तकोना वाचनमां सतत निमग्न रहेता हता. नानपणथी ज तेमने प्राचीन वस्तुओना संग्रहनो भारे शोख लागी गयो हतो अने तेथी तेओ जूना शिक्काओ, चित्रो, मूर्तिओ अने तेवी बीजी बीजी चीजोनो संग्रह करवाना अत्यंत रसिक थई गया हता. झवेरातनो पण ते साथे तेमनो शोख खूब बध्यो अने तेथी तेओ ए विषयमां पण खूब ज निष्णात थई गया हता. एना परिणामे तेमणे पोतानी पासे शिक्काओ, चित्रो, हस्तलिखित बहुमूल्य पुस्तको विगेरेनो जे अमूल्य संग्रह भेगो कर्यो हतो ते आजे हिंदुस्थानना गण्या गांठ्या एवा संग्रहोमां एक महत्त्वनुं स्थान प्राप्त करे तेत्रो छे. तेमनो प्राचीन शिक्काओनो संग्रह तो एटलो बधो विशिष्ट प्रकारनो छे के जेथी आखी दुनियामां तेनुं त्रीजुं के चोथुं स्थान आवे तेम छे. तेओ ए विषयमा एटला निपुण थई गया हता के मोटा मोटा म्युजिअमोना सरकारी क्युरेटरो पण वारंवार तेमनी सलाह अने अभिप्राय मेळवावा अर्थे तेमनी पासे आवता जता. ओ पोताना एवा उच्च सांस्कृतिक शोखने ठईने देश-विदेशनी आवी सांस्कारिक प्रवृत्तिओ माटे कार्य करती अनेक संस्थाओना सदस्य विगेरे बन्या हता. दाखला तरीके-रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेंगाल, अमेरिकन Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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