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प्रस्तावना .amirmwamremamurarmerramerama
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नहीं मिल सका-ऐसे और भी अनेक पद्य चादको मिले है परन्तु इतना सुनिश्चित है कि ग्रन्थमें जो कुछ लिखा गया है वह निराधार नहीं है। पं० आशाधरजी 'नाऽमूलं लिख्यते किंचित्' इस नीतिका अनुसरण करनेवाले विद्वानोंमेंसे थे, और इसलिये कल्पितरूपमें ऐसा कुछ भी लिखते मालूम नहीं होते जिसके लिये उनके पास कोई मूल आधार या प्रमाण न हो । इस ग्रन्थमें उन्होंने अपने कुछ पूर्व-रचित पद्योंका भी संग्रह किया है, ऐसा निम्न पद्योंके अस्तित्वसे जान पड़ता है :
शुद्ध-बुद्ध-स्वचिद्र पादन्यस्यामिमुखी रुचिः ।
व्यवहारेण सम्यक्त्वं निश्चयेन तथाऽऽत्मनः ॥१७॥ * यहाँ उनमेसे नमूनेके तौर पर दो पद्य नीचे दिये जाते हैं:(१) यथैकमेकदा द्रव्यमुत्पित्सु स्थास्तु नश्वरं।
तयैव सर्वदा समिति तत्त्वं विचिन्तयेत् ।। __ यह तत्वानुसाशनका पद्य है, इसके आशयको कुछ स्पष्ट करते हुए दो पद्यों नं० ३४,३५ में उद्धृत किया गया है । (२) स्थूलो व्यंजनपर्यायो वाग्गम्योऽनश्वरः स्थिरः।।
सूक्ष्मः प्रतिक्षणध्वंसी पर्यायश्चार्थसंज्ञकः ।।
यह पद्य अनगारधर्मामृत द्वि० अध्यायके २४वें पद्यकी स्वोपन-टीकामें 'उक्तंच' रूपसे उद्धृत है और इसलिये ग्रन्थकर्ताकी निजकी कृति न होकर किसी दूसरे ग्रन्थकारकी कृति जान पड़ती है। इसके पूर्वार्ध तथा उत्तरार्धके आशयको क्रमश: दो पद्यों ३८,३८ के उत्तरार्ध तथा पूर्वार्ध में संग्रह किया गया है।