________________
•rman ..
Worewww
अध्यात्म-रहस्य सर्वत्रकाले - सर्वेषां खेऽवगाहोपकारिता । सर्वेषामर्थ-पर्यायः सूक्ष्मः प्रतिक्षण-क्षयी ॥३८॥ __'पुद्गलद्रव्यमें रूपित्व-गुण, धर्मद्रव्यमें जीव-पुद्गल दोनोंके प्रति गत्युपकारिता-गुण, अधर्मद्रव्यमें दोनोंके प्रति स्थित्युपकारिता-गुण, कालमें सर्वत्र परिणेतृत्त्व-गुण और
आकाशमें सब द्रव्योंके प्रति अवगाहोपकारितागुण है । सर्व द्रव्योंकी अर्थ-पर्याय सूक्ष्म हैं और प्रतिक्षण विनश्वर है।'
व्याख्यान दो पद्योंमें शेष पॉच द्रव्योंके विशेष गुणोंका उल्लेख है; जैसे पुद्गलमें रूपित्व, धर्मद्रव्यमें जीवपुद्गलकी गतिमें सहकारिता, अधर्ममें दोनोंकी स्थितिमें सहकारिता, कालमें परिणेतृत्व और आकाशमें सब द्रव्योंकी अवगाहनामें सहकारिता नामका गुण है। माथ ही, पर्यायोंका उल्लेख करते हुए उन्हें मुख्यतः दो भागोंमें बांटा है-एक अर्थपर्याय और दूसरी व्यंजनपर्याय । अर्थपर्यायके विषयमें लिखा है कि वह सभी द्रव्योंकी सूक्ष्म-पर्याय है और क्षण क्षणमें नाश होनेवाली है।।
. जीव-पुद्गलकी व्यंजनपर्याय वागम्योऽनश्वरः स्यान्मूर्ती व्यंजनपर्ययः । जीव-पुद्गलंयोव्यं तन्मयं तेचे तन्मयाः॥३६ १ घटनाकाले।