________________
अध्यात्म-रहस्य
Meanwramanand
टीका समाप्त की, जिसकी प्रशस्तिमें त्रिष्ठिस्मृतिशास्त्र सटीकके अतिरिक्त जिनयजकल्पकी टीकाके भी रचे जानेका और उल्लेख है । और सं० १३०० में अनगारधर्मामृतकी स्वापज्ञ-टीका पूर्ण की गई, जिसमें उससे पूर्व 'राजीमती-विप्रलम्भ (खण्डकाव्य) और प्रस्तुत 'अध्यात्मरहस्य के रचे जानेका उल्लेख है। इस टीकाके बाद आपकी दूसरी किसी कृतिका पता अभी तक नहीं चला | आपकी जो मुख्य कृतियाँ अभी तक भी अनुपलब्ध चली जाती हैं और जिनकी प्रयत्नपूर्वक शीघ्र खोज होनी चाहिये उनके नाम इस प्रकार हैं
१ प्रमेयरत्नाकर, २ भरतेश्वराभ्युदयकाव्य, ३ रौद्रटकाव्यालंकार-टीका,४ ज्ञानदीपिका (धर्मामृतपंजिका), ५टांगहृदयोद्योत, ६ अमरकोप-टीका, ७ राजीमतीप्रिलम्म ।
इस प्रकार यह ग्रन्थकार और उनकी कृतियोंका संक्षिप्त परिचय है, जो प्रायः उनकी ग्रंथ-प्रशस्तियों परसे उपलब्ध होता है।
उपसंहार और आभार मेरा विचार था कि मैं 'अध्यात्म-योग-विद्या' पर एक गवेषणापूर्ण निवन्ध लिखें और उसे भी इस प्रस्तावनाके साथ प्रकट करूँ, जिसके लिये मैंने ग्रन्थों परसे कितने