Book Title: Adhyatma Rahasya
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 129
________________ अध्यात्म-रहस्य व्याख्या-यहाँ ग्रन्थका उपसंहार करते हुए रत्नत्रयधर्मके व्यवहार और निश्चय दोनों रूपोंका एक साथ उल्लेख किया है और यह प्रतिपादन किया है कि जो जीव काललब्धि श्रादिके वश व्यवहार-रत्नत्रयको धारण कर अपूर्णशुद्धिको प्राप्त होते हैं वे निश्चय-रत्नत्रयके बलपर पूर्णशुद्धिको भी प्राप्त होते हैं । अन्तमें शुद्धिप्रिय-भव्यजीवोंको यह आशीर्वाद दिया है कि 'यह व्यवहार और निश्चयरूप रत्नत्रयधर्म तुम्हारा कल्याण करे । इस पद्यसे जहाँ व्यवहार तथा निश्चय रत्नत्रयका तुलनात्मक स्वरूप स्पष्ट होता है वहाँ यह भी स्पष्ट होता है कि रत्नत्रयके दोनों ही रूप आत्मशुद्धिके कारण हैंएकसे अपूर्ण शुद्धि बनती है तो दूसरेरो पूर्ण । अपूर्णसे पूर्णकी ओर गमन होता है अथवा अल्पशुद्धिके द्वारा ही महती शुद्धिकी साधना वनती है, इस दृष्टिसे व्यवहार रत्नत्रयको यहाँ प्रथम स्थान दिया गया है, तदनन्तर निश्चय रत्नत्रयको रक्खा गया है और दोनोंको एक ही धर्मके अंगरूपमें प्रतिपादन करते हुए दोनोंको ही कल्याणकारी घोषित किया है। व्यवहार-रत्नत्रय निश्चय-रत्नत्रयका साधन है, इस विषयमें श्रीरामसेनाचार्यका निम्न वाक्य खास तौरसे ध्यानमें लेने योग्य है, जिसमें मोक्षके हेतुभूत व्यवहार-रत्नत्रय

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