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सन्मति -विद्या-प्रकाशमाला
उत्पन्न होनेवाली श्रात्माकी परमानन्दमय वृद्धि है उसका नाम निश्चय (अंजसा ) सम्यक्चारित्र है । व्यवहार सम्यक् - चारित्रको गौणचारित्र और निश्चय सम्यक् चारित्रको मुख्यचारित्र भी कहा जाता है ।
उभयरूप रत्नत्रयके कल्याणकारित्वकी घोषणा तत्त्वार्थाभिनिभेश-निर्णय- तपश्चेष्टामयीमात्मनः शुद्धिं लब्धिवशाद्भजन्ति विकलां यद्यच्च पूर्णामपि । स्वात्म - प्रत्यय - वित्ति-तल्लयमयों तद्भव्यसिंह-प्रियां भूयाद्वो व्यवहार- निश्चयमयं रत्नत्रयं श्रेयसे ॥७१
'जो जीव काल आदि किसी लब्धिके वशसे तत्त्वार्थके अभिनिवेशरूप-श्रद्धात्मक शुद्धिको, तत्त्वार्थके निर्णयरूपसम्यग्ज्ञानात्मक शुद्धिको और तपश्चरणमयी सम्यक्चारित्ररूप-शुद्धिको, जो कि सब विकल-व्यवहाररूप अपूर्ण है, धारण करते हैं वे स्वात्मप्रत्यय – निजात्मप्रतीतिरूप सम्यग्दर्शन, स्वात्मवित्ति - निनात्मज्ञानरूप सम्यग्ज्ञान और तल्लयमयी --- निजात्मनिमग्नतारूप सम्यक् चारित्रमयी उस पूर्ण-श्रात्मशुद्धिको प्राप्त करते हैं जो कि भव्यसिंहोंभव्योचमोंकी प्रिया है— उन्हें अति प्यारी है। इस प्रकार यह व्यवहार और निश्चयरूप रत्नत्रय धर्म तुम्हारे कल्याणके लिये होवे ।'
१ व्यवहाररूपां पूर्णामित्यर्थः ।