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सन्मति-विद्या-प्रकाशमाला । व्याख्या-यहाँ भी स्वात्मा अपनी उसी भूलके विषयमें सोच रहा है कि जिस प्रकार मैंने अपने द्वारा धारण किये हुए पर्याय-शरीरको पहले अपना आत्मा समझा है उसी प्रकार स्त्री-पुत्रादिके द्वारा धारण किये हुए उनके अचेतन पर्याय-शरीरको भी उनका आत्मा समझा है * और शारीरिक दृष्टिसे उन्हें अपना माननेके कारण उनके शरीर-जन्य सुख-दुःखोंका भी मैं भागी रहा हूँ। यह भी मेरी पिछली भूल थी, जिसे अब आत्माका ज्ञान प्राप्त होने पर मैंने भले प्रकार समझा है।
भूल-भ्रान्तिकी निवृत्तिपर आनन्दका अनुभव सम्प्रत्यात्मतयात्मानं देहं देहतयात्मनः । परेषां च विदन् साम्यसुधा चर्वनर विक्रियाम् ॥५१
'अब मैं अपने तथा दूसरोंके आत्माको आत्मरूपसे और देहको देहरूपसे जानता हुआ निर्विकार साम्यसुधाका.आस्वादन कर रहा हूँ।
व्याख्या-अपनी पिछली भूल मालूम पड़ने पर आत्माकी परिणति कैसी होती है उसीका इस पद्यमें उल्लेख
अब वह देहमें आत्माका आरोप नहीं करता-आत्मा * स्वदेहसदृशं दृष्ट्वा परदेहमचेतनम् ।
परात्माधिष्ठितं मूढः परत्वेनाऽव्यवस्यति ॥१०॥ (समाधितन्त्र) १ दारादीनाम् । २ अनुभवन् तिष्ठामि ।