Book Title: Adhyatma Rahasya
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ 洽 अध्यात्म-रहस्य उपादेयरूपमें जिन सम्यग्दर्शनादिककी विज्ञप्ति ६४वें पद्यमें की गई थी उनका क्रमशः स्वरूप निश्चय और व्यवहार दोनों नयोंकी दृष्टिसे आगे दिया जाता है । व्यवहार और निश्चय सम्यग्दर्शनका स्वरूप शुद्ध-बुद्ध-स्व चिद्रपादन्यस्याभिमुखी रुचिः । व्यवहारेण सम्यक्त्वं निश्चयेन तथाऽऽत्मनः ॥६७ 'आत्माकी अपने शुद्ध बुद्ध - चिद्रपसे भिन्न जो अन्यामिमुखी - द्रव्यों तथा सप्ततच्चादिके अभिमुख - रुचि है वह व्यवहारनयसे सम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन) है; निश्चयनयसे उस आत्माभिमुखी रुचिका नाम सम्यक्त्व है जो अपने शुद्ध-बुद्ध- चिद्रूपकी ओर प्रवृत्त होती है । व्याख्या - यहाँ व्यवहार तथा निश्चयनय की दृष्टिसे सम्यक्त्वका - सम्यग्दर्शनका - स्वरूप दिया है। आत्माकी उस रुचि - प्रतीतिका नाम व्यवहारसम्यग्दर्शन है जो अपने शुद्धबुद्ध- चिद्रपसे भिन्न जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल नामके छह द्रव्यों तथा जीव, अजीव, आसव, बन्ध, संबर, निर्जरा और मोक्ष नामके सप्त तच्चों अथवा पुण्यपाप-सहित नव पदार्थों आदि के अभिमुख रहती है- मुख्यतः उन्हें ही अपना विषय बनाये रखती है - और निश्चयसम्यग्दर्शन आत्माकी उस स्वात्माभिमुखी रुचिका नाम है जो मुख्यतः अपने शुद्ध-युद्ध - चिद्रूपकी ओर प्रवृत्त होती है

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137