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सम्मति-विद्या प्रकाशमाला wimmmmam.commmmmmmmcimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
- व्याख्या-प्रवाहरूपसे, शुद्धस्वात्मामें वर्तनेवाली बुद्धि जब शुद्ध-स्वात्मामें इतनी अधिक स्थिर अथवा एकाग्र होजाती है कि शुद्धस्वात्मासे भिन्न किसी दूसरे पदार्थक ज्ञानका स्पर्श तक नहीं करती तब वह- ध्यानारूढ अथवा --ध्यानरूप परिणत बुद्धि ही 'ध्याति' नामको प्राप्त होती है। । यहाँ बुद्धिका 'स्थिरा' विशेषणके साथ 'ज्ञानान्तराऽस्पर्शवती' विशेषण ख़ास तौरसे ध्यानमें लेने योग्य है 'और वह · 'एकाग्र-चिन्ता-निरोध'का द्योतक है, जो कि ध्यानको प्रसिद्ध लक्षण है, और उसके द्वारा यह सूचित किया गया है कि यदि बुद्धि भ्यानके समय ध्येयके अतिरिक्त किसी दूसरे पदार्थ-ज्ञानका भी स्पर्श कर रही है तो समझना चाहिये कि वह ध्येयके प्रति एकाग्र नहीं, और इसलिये 'च्याति' पदके योग्य नहीं । ध्यातिको ध्यान व्रतलाते हुए यही बात श्रीरामसेनाचार्यने तत्वानुशासनके निम्न वाक्यमें प्रतिपादन की है, — इष्टे ध्येये स्थिरा बुद्धिर्या स्यात्सन्तानवसिनी ।ज्ञानान्तराऽपरामृष्टी साध्यतिथ्यानमीरिता joir
दृष्टिका लक्षण शुद्धः स्वात्मा यया साक्षातं क्रियते ज्ञानविग्रहः। -विशिष्टभावना-स्पष्ट-श्रुतात्मा-दृष्टिस्त्र सामा।
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