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सन्मति-विद्या-प्रकाशमाला द्रव्य-गुण-पर्यायके लक्षण तथा जीव-गुण * गुण-पर्याय-वद्रव्यं गुणाः सहभुवोन्यथा' । पर्यायास्तत्र चैतन्यं गुणःपुस्यन्वयित्वतः३॥३६ ____ 'नो द्रव्य है वह गुण-पर्यायवान् है। जो सहभावी हैं वे गुण हैं, जो सहभावी न होकर क्रमभावी हैं वे पर्याय हैं। पुरुषमें--जीवात्मामें--चैतन्य गुण है। क्योंकि वह अन्वयी है-जीवके साथ सदा रहता है, कभी उससे अलग नहीं हो सकता। __व्याख्या-इस पद्यके प्रथम चरणमें द्रव्यका लक्षण तत्वार्थसूत्रके शब्दोंमें गुण-पर्यायवान दिया है। फिर गुणोंका लक्षण सहभावी और पर्यायोंका लक्षण क्रममावी देकर जीवात्माका गुण चैतन्य प्रकट किया है, जो कि उसका असाधारण अथवा विशेष गुण है और किसी भी काल तथा क्षेत्रमें उससे पृथक नहीं होता। • शेष द्रव्योंके गुण तथा अर्थपर्यायका सरूप रूपित्वं पूदगले धर्मे गत्युपग्राहिता तयोः । स्थित्युपग्राहिताऽधर्मे परिणेतृत्व-योजना॥३७॥ * सहवृत्ता गुणस्तत्र पर्यायाः क्रमवर्तिनः। ___ स्यादेतदात्मकं द्रव्यमेते च स्युस्तदात्मकाः ॥११४॥ (तत्त्वानु०) १ क्रमभुवः पर्यायाः।२ आत्मनि । ३ अनुगामित्वात् । , ४ जीव-पुद्गलयोः।
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