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अध्यात्म- रहस्य
ऐसी स्थिति में भवितव्यताका आश्रय लेनेका अभिप्राय इतना ही है कि स्वयं तत्परताके साथ कार्य करके उसे फलके लिये भवितव्यता पर छोड़ दो -- फलकी एपणा (अमिलापा ) से श्रातुर मत हो; क्योंकि इच्छित फलकी प्राप्ति उस सब साधन-सामग्रीकी पूर्णता पर अवलंबित है, जो तुम्हारे लेके वशकी नहीं है --तुम किसी द्रव्यके स्वभावको उससे पृथक नहीं कर सकते और न उसमें कोई नया स्वभाव उत्पन्न ही कर सकते हो । सब द्रव्योंका परिणमन उनके स्वभाव तथा उनकी परिस्थितियोंके अनुसार हुआ करता है। इसलिये कर्तृत्व-विपयमें तुम्हारा एकांगी अहंकार निःसार है।
यहाँ एक दृष्टान्त - द्वारा इस विपयको कुछ स्पष्ट किया जाता है। मोहनका हृदय सोहनके दुख-दारिद्र्यका परिचय पाकर द्रवीभूत होगया और उसने उसे एक अच्छी रकम दानमें देदी । दानकी रकमको पाकर सोहनकी दरिद्रता दूर हुई और वह अपनेको सुखी अनुभव करने लगा । इधर मोहनको यह अहंकार हो आया कि मैंने हो सोहनका दुख-दारिद्र्य दूर किया है और मैंने ही उसे सुखी बनाया है । परन्तु वह यह नहीं समझता कि उस दिन जो दान उसने दिया था वह दान उससे पहले क्यों नहीं 'दिया गया – सोहनकी 'वह दुख-दरिद्रावस्था तो महीनों