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अध्यात्म-रहस्य
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'जो ज्ञान पदार्थके साथ संसष्ट-संमिश्रित-रूपसे प्राप्त होता है उसका वाचक शब्द होनेसे वही ज्ञान सविकल्प उहरता है।'
व्याख्या-यहाँ सविकल्पज्ञानकी पहिचानके लिये दो बातोंका निर्देश किया है-एक तो यह कि, वह शुद्ध स्वामासे भिन्न किसी दूसरे पदार्थक साथ भी संसर्गको प्राप्त हो रहा हो, और दूसरे यह कि वह शब्दके वाच्यरूपमें स्थित हो-किसी शब्द या शब्द-समूहका विषय बना हुआ हो।
व्यवहार और निश्चय सम्यकचारित्रका स्वरूप सवृत्तं सर्वसावद्य-योग-व्यावृत्तिरात्मनः । गौणं स्यावृत्तिरानन्द-सान्द्रा कर्मच्छिदाञ्जसा ७० ___ 'आत्माकी सर्व-सावध-योगसे जो व्यावृत्ति (निवृत्ति) है उसका नाम गौण अथवा व्यवहार सम्यक्चारित्र है, और जो कर्मके छेदनसे उत्पन्न होनेवाली आनन्द-सान्द्रापरमानन्दमय-वृत्ति है उसका नाम अंजसा (मुख्य) अथवा निश्चय सम्यक चारित्र है।
व्याख्या-मन-वचन-कायके द्वारा किये जानेवाले हिंसादिक सभी पापकाँसे आत्माकी जो निवृत्ति है उसका नाम व्यवहार सम्यक्चारित्र है। और जो काँके नाशसे १व्यवहारम्।