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प्रशा
सन्मति-विद्या-प्रकाशमाला विषय पृष्ठ | विषय
पृष्ठ मुक्ताहारके रूपमें आत्म-भावना ५० जीवन्मुक्तिकी ओर अग्रसरता ६८ आनन्द-स्वरूपका स्पष्टीकरण ५१ त्रिविधकर्मके त्यागकी भावना ६६ आत्म-विकासका क्रम
भावकर्मका स्वरूप आत्माकी एकाऽनेकता द्रव्यकर्मका स्वरूप आत्मसंस्कारका उपाय नोकर्मका स्वरूप परंज्योतिका स्पष्टीकरण हेय और उपादेयका विवेक ७३ आत्माके द्वारा आत्माका अहंकार-भवितव्यताके त्यागदर्शन कब होता है
ग्रहणकी प्रेरणा ७६ आत्मानुभूतिका उपाय ५६ अहकार को निःसारता और स्वात्माधीन आनन्द वचनके । भवितव्यताके आश्रय-ग्रहण अगोचर है
की दृष्टिका स्पष्टीकरण ७७ पिछली भूलका सिंहावलोकन ५७ | व्यवहार और निश्चय भूल-भ्रान्तिकी निवृत्ति पर
सम्यग्दर्शनका स्वरूप ८५ आनन्दका अनुभव ६०
निऔरव्य०सम्यग्ज्ञान-स्वरूप ८६ तत्त्वज्ञानादिसे व्याप्त चित्तकी इन्द्रिय-दशा ६१
| सविकल्पज्ञानका स्वरूप ८६ स्वानुभूति-वृद्धि के लिये भावना ६३ द्विविधसम्यक्चारित्रका स्वरूप ८७ शुद्धोपयोगका क्रम-निर्देश ६४ उभयरूप रत्नत्रयके कल्याणअशुभसे निवृत्ति और शुभमें | कारित्वकी घोषणा प्रवृत्तिके बिना व्यवहार- हृदयमे परब्रह्मरूपके स्फुरणकी
चारित्र भी नहीं बनता ६५ | __भावना त्रिविध उपयोगका स्वरूप ६५ | अन्त्य-मंगल-कामना ६२ शुद्धात्मकी भावनाका फल ६६
अध्यात्मरहस्यकी पद्यानुक्रमणी ६३ शुद्धात्मस्वरूपमें लीन योगीकी निर्भयता ६७
व्याख्यामें उद्धृत-वाक्योंकी परमानन्द-मग्न योगी बाह
अनुक्रमणी दुःखोंसे खिन्न नहीं होता ६८ | व्याख्यामें सहायक ग्रन्थ-सूची ६६