________________
अध्यात्म रहस्य उपस्थित करे उन सबको अनात्मा समझकर छोड़ते जाना चाहिये, जब हृदयमें उस प्रकारके विकल्पोंका उदय होनाचित्र खिंचना-रुक जाय तब आत्मा स्वयं अपने निर्मल चैतन्यस्वरूपमें प्रकाशित होता है। यह उसके दर्शनकी एक पद्धति है।
आत्मज्योतिकी दृश्यता और अदृश्यता स विश्वरूपोनन्तार्थाकार-प्रसर-मूत्वतः । सोरिदृशामलक्ष्योपि लक्ष्यः केवल-चक्षुषाम् २१
'वह ज्योति अनन्त पदार्थोके आकार-प्रसारको भूमि होनेसे विश्वरूप है और छमस्थोंके लिये अदृश्य-अलक्ष्य होती हुई भी केवल-चक्षुओंसे लक्ष्य है-देखी जाती है ।' ___ व्याख्या-जिस आत्म-ज्योतिके दर्शनकी प्रेरणादिका पिछले दो पद्योंमें उन्लेख है उसके विषयमें यहाँ यह प्रकट किया गया है कि 'वह ज्योति अनन्त पदार्थोके
आकार-प्रसारकी भूमि है-विश्वके सारे पदार्थ अपने पूर्ण आकारके साथ उसमें प्रतिबिम्बित होते हैं और इसलिये वह विश्वरूप है । ऐसी विश्वरूप ज्योतिछबस्थोंके लिये प्रायः अदृश्य होती हुई भी केवल-ज्ञानियों के चतुओंसे दृश्य है- स्पष्ट देखी जाती है। - - -
१छमस्थानाम् ।