Book Title: Adhyatma Rahasya
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ प्रस्तावना ३१ आत्मशुद्धिको उत्तरोत्तर बढ़ाता हुआ अथवा उपेक्षारूप विद्या अविद्याका छेदन करता हुआ क्रमशः अपने उत्कृष्ट आत्म-विकासको भी प्राप्त करने में समर्थ होता है (४२) । - संक्षेपतः ग्रन्थ में स्वात्मा शुद्ध- चिदानन्दमय स्वरूपका अन्य द्रव्यादि पदार्थोंसे पथक बोध कराते हुए उसको साधने - क्रमशः पूर्ण विकसित करने के लिये व्यवहार और निश्चय दोनों प्रकारके रत्नत्रय - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्पकचारित्ररूप योग-साधनों के अवलम्बनका विधान है। ग्रन्थकारका संक्षिप्त परिचय इस ग्रन्थके कर्ता पं० शाघरनी जैनसमाजमें एक बहुश्रुत विद्वान् होगये हैं, जिनके पास अनेक सुनियोंभट्टारकों तथा विद्वानोंने विद्याध्ययन किया है - न्याय, काव्य, व्याकरण तथा धर्मशास्त्रादि - विपयों में शिक्षा प्राप्तकी है, जिन्हें महान् विद्वान् मदनकीर्ति यतिपतिने 'प्रज्ञापुञ्ज' कहा है, उदयसेनसुनिने जिनका 'नय विश्वचतु' 'काव्यामृतौ परसपानसुतृप्तगात्र' तथा 'कलि - कालिदास' जैसे विशेषण - पदोंके द्वारा अभिनन्दन किया है और विन्ध्यवर्मा राजाके महासान्धिविग्रहिकमन्त्री (परराष्ट्रसचिव) कवीश विन्दणने जिनकी एक श्लोक - द्वारा 'सरस्वतीपुत्र' आदिके रूपमें भारी प्रशंसा की है । इमसे आशाघरजी की असाधा

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137