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अध्यात्म-रहस्य
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प्रभावक पुरुपकी प्रेरणानुसार सोहनकी आर्थिक सहायता करते ही वन पड़ा। इस तरह मोहनके उस दिनके दानकार्यमें कितने कारणोंका योग जुड़ा, जिससे वह दानक्रिया सम्पन्न हो सकी, यह सहज ही जाना जा सकता है।
और इसलिये अकेले मोहनके यशका वह कार्य नहीं कहा जा सकता और न उसे ही उसका सारा श्रेय दिया ना सकता है। मोहनके उस ढानमें उसके दानान्तरायकर्मके क्षणोपरामादिके साथ मोहनके भाग्योदय एवं लाभान्तराय कमके क्षयोपशमादिका भी बहुत कुछ हाथ है। यदि वह न होता तो मोहन रुपयोंकी थैलियाँ ककर भी सोहनके विषयमें अपने उस दान-कार्यको चरितार्थ नहीं कर सकता था । इस सम्बन्धमें एक पुरानी कथा प्रसिद्ध है कि, किसी लकड़हारेके दुःख-कष्टसे द्रवीभूत होकर एक देवताने उसके , सामनेके मार्गमें कोई बहुमूल्य रत्न डाल दिया; परन्तु उसके भाग्यका उदय नहीं था और इसलिये उसी क्षण उसके हृदयमें यह भावना उत्पन्न हुई कि मै अन्धा होने पर भी मार्ग चल सकता हूँ या कि नहीं? और परीक्षणके लिये ऑख मीचकर चलते हुए वह उस बहुमूल्य रत्न पर पाँव रखता हुआ आगे निकल गया-उसे उस रत्नका लाभ नहीं हो सका । और एक दूसरे दरिद्री मनुष्यको ऐसे रत्नका लाम हुअा भी, तो उसने उससे दमड़ीके तेलकी