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सन्मति-विद्या-प्रकाशमाला
मात्म-ज्योतिका लक्षण तस्य लक्षणमन्त गुरुपयोगो हतया । नित्यमन्यतया भाग्भ्यःपरेभ्योन्यत्र लक्षणात् २२
'उस ज्योतिका लक्षण अहंताकी दृष्टिसे अन्तर्वर्ती उपयोग है; क्योंकि वह नित्य ही अन्यताकी दृष्टिसै लक्षित पृथग्भूत परपदार्थोंके--अचेतनद्रव्योंके--लक्षणोंसे भिन्न है।" ___ व्याख्या-यहाँ उस आत्मज्योतिका लक्षण, जो पद्य नं० ४ के अनुसार अहंताकी दृष्टिसे लक्षित होती है, अन्तर्वर्ती उपयोग बतलाया है और साथ ही यह प्रतिपादन किया है कि यह लक्षण सदैव अन्यताकी दृष्टिसे लक्षित होनेवाले अचेतनद्रव्योंके लक्षणोंसे भिन्न है।
छह द्रव्योंमें जीवद्रव्य ही एक ऐसा द्रव्य है जो चेतनगुणसे विशिष्ट है और इसलिये दर्शन तथा ज्ञानरूप उपयोग उसीका लक्षण है। शेष पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल नामके द्रव्य अचेतन होनेके कारण इस उपयोग-लक्षणसे रहित हैं। उन द्रव्योंके दूसरे अलग अलग लक्षण हैं, जिन्हें आगे सूचित किया गया है। उपयोगका 'अन्तर्वर्ती' विशेषण आत्माके साथ उसके वादात्म्यका-आत्मभूतताका--सूचक है। १ पृथग्भूतः अन्तरं भजतीति अन्तर्भाक् । • पृथग्मूतेभ्यः कथंचित् ३अचेतनद्रव्येभ्यः।