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विद्वद्वर-श्रीमदाशाघर-विरचित अध्यात्म-रहस्य (योगोद्दीपन-शास्त्र)
मंगलाचरण भक्ति-लीन भव्योंको करते, जो निज-पदका अनुपम दान । उन श्रीवीरनाथको प्रणमू, औ' श्रीगौतम गुरू महान ॥१॥ अध्यात्मादिरहस्य शास्त्र जो, योगोद्दीपन-गुणभंडार | व्याख्या सुगम करूं मैं उसकी,निज-परके हितको उर धार ॥२ भव्येभ्यो भजमानेभ्यो यो ददाति निजं पदम् । तस्मै श्रीवीरनाथाय नमः श्रीगौतमाय च ॥१॥
'जो मनमान भव्योंको-मक्तिमें अनुरक्त सुपात्र भन्यजीवोंको-अपना पट प्रदान करते हैं जिनके भजनआराधनसे भव्यप्राणियोंको उन जैसे पदकी प्राति होती है-उन श्रीवीरस्वामीको-अक्षय-ज्ञानलक्ष्मी एवं भारती
विभूविरूप 'श्री'से सम्पन्न भगवान महावीरको तथा श्री- गौतमस्वामीको नमस्कार हो ।