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सन्मति-विद्या प्रकाशमाला कारण होनेसे; फिर भी नयदृष्टिसे मिथ्यादर्शनादिके तथा सम्यग्दर्शनादिके विषयोंमें परस्पर अन्तर है । व्यवहारनयके विषयभूत मिथ्यादर्शनादिक तथा सम्यग्दर्शनादिक अध्यामसे भिन्न बाह्य-विषयोंसे सम्बन्ध रखते हैं; जैसे क्रुदेवागमगुरु आदिके श्रद्धानादिरूप मिथ्यादर्शनादिक तथा सुदेवागम गुरु या सप्ततचादिके श्रद्धानादिरूप सम्पग्दर्शनादिक ।
और निश्चयनयके विषयभूत मिथ्यादर्शनादिक तथा सम्यग्दर्शनादिक एकमात्र अपने आत्म-विषयसे सम्बन्ध रखते हैं--पर-पदार्थोके मिथ्या अथवा सम्यक श्रद्धानादिसे उनका सम्बन्ध नहीं है।
हेय और उपादेयके इस विवेकको तत्वानुशासनमें अच्छा खुलासा करके बतलाया गया है । अतः विशेष जानकारीके लिये उसे देखना चाहिये। न मे हेयं न चाऽऽदेयं किंचित्परमनिश्चयात् । तयत्नसाध्या वाऽयलसाध्या वा सिद्धिरस्तु मे।६५
(किन्तु) परमशुद्ध-निश्चयनयकी दृष्टिसे मेरे लिये न कुछ हेय है और न कुछ प्रादेय(प्राय)। मुझे तो सिद्धिस्वात्मोपलब्धि-चाहिये, चाहे वह यत्नसाध्य हो या अयत्नसाध्य-उपाय करनेसे मिले या विना उपायके ही।'
व्याख्या-यहाँ परमनिश्चयनयकी दृष्टिसे यह प्रतिपादन किया है कि मेरे लिये न कोई पदार्थ हेय है और न