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सन्मति-विद्या प्रकाशमाला स्वरूपका प्रतिपादन किया गया है। क्योंकि अध्यात्मविषयके अनेक ग्रंथोंमें दृष्टि-विषयके इस आत्मसाक्षात्कारको 'संवित्ति' के नामसे उल्लेखित किया है, जो आत्मारूप लक्ष्यको उसके निजी लक्षण दर्शन और ज्ञानके द्वारा भले प्रकार अनुभव किया करती है।
दृष्टिका माहाम्य सैव सर्वविकल्पानां दहनी दुःखदाय॑िनाम् । सैव स्याचत्परं ब्रह्म सैव योगिभिरर्थ्यते ॥११ ___ 'वह शुद्धस्वात्माको साक्षात् करनेवाली दृष्टि ही समस्त दुःखदायी विकल्पोंको भस्म करनेवाली है, वही उस प्रसिद्ध परमब्रह्मरूप है और वही योगियोंके द्वारा उपादेय होकर प्रार्थना की जाती है।'
व्याख्या-इस पबमें शुद्धस्वात्माका साक्षात्कार कराने वाली दृष्टिके माहात्म्यका वर्णन है और उसके द्वारा यह प्रकट किया गया है कि वह दृष्टि ही उन विकल्पोंको जला डालनेवाली है जो अपने आत्माको दुःख तथा कट दिया करते हैं, वही (परंब्रह्मको प्राप्त करानेसे) परब्रह्मरूप है और उसकी प्राप्ति ही योगिजनोंका परम लक्ष्य रहता है, और इसीसे वे उसके लिये प्रार्थना एवं भावना किया करते हैं।
१ तत्प्रसिद्धं । २ उपादेयरूपां क्रियते याच्यते ।