Book Title: Adhyatma Rahasya
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 112
________________ ७२ सन्मति -विद्या-प्रकाशमाला उत्कर्षण, अपकर्षण और फलादिके वर्णनोंसे ग्रंथ मरे हुए हैं । अतः इस विपयकी विशेष जानकारीके लिये षट्खंडागम, कसायपाहुड, धवल, जयधवल, महाबन्ध, कम्मपयडी, गोम्मटसार और पंचसंग्रह जैसे ग्रन्थोंको देखना चाहिये । नोकर्मका स्वरूप यज्जीवेऽङ्गादि तद्वृद्धि-हान्यर्थ: पुद्गलोच्चयः । तथा विकुरुते कर्मवशान्नकर्म नाम तत् ॥६३॥ 'जीवमें जो अंगादिक हैं उनकी वृद्धि हानिके लिये जो पुद्गल-समूह कर्मोदयवश तद्रूप विकारको प्राप्त होता है। उसका नाम 'नोकर्म' है ।' व्याख्या -- संसारी जीवोंके शरीरों और पर्याप्तियोंकी पुष्टि तथा क्षीणतादिके निमित्त पुद्गल - परमाणुओं का जो समूह नामादि कर्मोंके उदयवश उन अंगादिकी पुष्टि आदि रूपमें परिणमता है उसे 'नोकर्म' कहते हैं । 'नो' शब्द यहाँ अभाव अर्थका वाचक न होकर ईपत्, अल्प, लघु अथवा किंचित् अर्थका वाचक है। 'अंग' शब्दसे औदारिक, वैक्रियिक और आहारक इन तीन शरीरोंका श्रमिप्राय है और 'आदि' शब्द के द्वारा यहाँ पट् पर्याप्तियोंका ग्रहण विवचित है; क्योंकि श्रभयचन्द्रादि आचार्यांने 'तीन शरीर और छह पर्याप्तियोंके योग्य पुद्गल के परिणाम तथा

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