Book Title: Adhyatma Rahasya
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 120
________________ सन्मति-विद्या-प्रकाशमाला से चल रही थी और उसका मोहनको कितना ही परिचय भी था, फिर भी सोहनका दुख-संकट मोचनके लिये मोहनके उस दानकी प्रवृत्ति उससे पहले नहीं हो सकी, जिसका कोई कारण तो होना ही चाहिये । और इसलिये कहना होगा कि या तो उससे पूर्व मोहनके दानान्तराय कर्मका उदय था-क्षयोपशम नहीं था, जिससे इच्छा रहते भी उमको दानमें प्रवृत्ति नहीं हो सकी; या उसे सोहनकी दुर्दशाका एसा परिचय प्राप्त नहीं हुआ था जिससे उसका हृदय दयासे द्रवीभूत होता और उसके फलस्वरूप दानकी भावना उत्पन्न होकर दानमें उसकी प्रवृत्ति होती; अथवा मोहनके भाग्यका उदय एवं लाभान्तराय कर्मका क्षयोपशम ही नहीं हुआ था, जिससे उसे उक्त धनकी पहलेसे' प्राप्ति होती-वह यही मोचता रहा कि 'यह दुःख-दारिद्र च कुछ दिनमें यों ही टल जायगा, क्यों किसीके आगे हाथ पसारा जाय ।' अन्तको जब दुःख-कट असह्य हो उठा और उधर सद्भाग्यका उदय हो आया-लाभान्तरायकर्मके क्षयोपशमने जोर पकड़ा-तब उसकी बुद्धि पलट गई और वह एक प्रभावशाली पुरुपको साथ लेकर मोहनके पास गया, जिसने सोहनकी सजनता और दुःखावस्थादिका ऐसा सजीव चित्र-प्रभावक-शब्दोंमें खींचकर मोहनके सामने रक्खा, जिससे उसका हृदय-एकदम पसीज गया और उसे उक्त

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