Book Title: Adhyatma Rahasya
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 21
________________ २१ प्रस्तावना गया है; परन्तु वस्तुस्थिति सर्वथा वैसी नहीं है । ग्रन्थमें आगे सत्, चित् और श्रानन्दका जो स्वरूप जैनदशनकी दृष्टिसे १० पद्योंमें व्यक्त किया गया है उसे देखते हुए दोनों। दर्शनोंमें ब्रह्मके इस स्वरूप - निर्देश - विषयमें परस्पर कितना अन्तर पाया जाता है । उसीका इस प्रसंग पर थोड़ासा दिग्दर्शन कराया जाता है: ● (१) वेदान्ती ब्रह्मको सर्वथा सत्रूप मानते हैं और झसे भिन्न दूसरे किसी भी द्रव्य अथवा पदार्थको सदरूप - में स्वीकार नहीं करते – सारे दृश्य जगत्को अथवा ब्रह्मसे भिन्न जो कुछ भी दिखाई देता या सुनाई पड़ता है उस सबको मिथ्या या असत् बतलाते हैं। प्रत्युत इसके, जैनदृष्टिसे ऐसा नहीं है। जैनदर्शनमें सत्को द्रव्यका लक्षणबतलाया है और यह प्रतिपादन किया है कि वह प्रतिक्षण उत्पाद - व्यय- प्रौव्यसे युक्त है, जो प्रतिक्षण उत्पाद-व्ययश्रीव्यसे युक्त नहीं वह सत् ही नहीं है । द्रव्यका दूसरा लक्षण गुण-पर्यायवान् भी बतलाया है, जिसमें गुणोंको सहभावी और पर्यायोंको क्रमभावी निर्दिष्ट किया है। साथ * जगद्विलक्षणं ब्रह्म ब्रह्मणोऽन्यन्न किंचन । : ब्रह्माऽन्यद्भाति चेन्मिथ्या यथा मरुमरीचिका ॥६३॥ दृश्यते श्रूयते यद्यद् ब्रह्मणोऽन्यन्न तद्भवेत् । तत्त्वज्ञानाश्च तद्ब्रह्म सच्चिदानन्दमद्वयम् ॥६४॥ — आत्मवोधे, शंकराचार्यः

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