Book Title: Adhyatma Rahasya
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 113
________________ अध्यात्म-रहस्य ७३ आदान (ग्रहण)को नोकर्म बतलाया है। जैसा कि निम्न वाक्योंसे प्रकट हैशरीरत्रय-पर्याप्तिषटक-योग्य-पुद्गलपरिणामो नोकर्म । • --लघीयस्त्रय-टीकायां, अभयचन्द्र: शरीरपर्याप्ति-योग्य-पुद्गलाऽऽदान नोकर्म । (न्यायकुमुदचन्द्र) हेय और उपादेयका विवेक व्यवहारेण मे हेयमसद्ग्राह्य च सवहिः । सिद्धय निश्चयतोऽध्यात्म मिथ्येतरहगादिकम् ॥ 'सिद्धिके अर्थ-स्वात्मोपलब्धिके लिये-मेरे व्यवहारनयकी अपेक्षा बाह्य-विषयक मिथ्यादर्शनादिक हेय (त्याज्य) है, जो कि असत् है; और बाह्य-विश्यक सम्यग्दर्शनादिक उपादेय (प्राय) हैं, जो कि सत् है। और निश्चयनयकी दृष्टिसे अध्यात्म-विषयक मिथ्यादर्शनादिक मेरे हेय हैं, जो कि असद हैं, और अध्यात्म-विषयक सम्यग्दर्शनादिक उपादेय है, जो कि सत् हैं।' व्याख्या-यहाँ स्वात्मोपलब्धिरूप सिद्धिके लिये व्यवहार तथा निश्चय दोनों नयोंकी दृष्टिसे हेय तथा उपादेयका निर्देश किया गया है। दोनों ही नयोंकी दृष्टिसे यद्यपि मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र हेय हैं-दुखका कारण होनेसे, और सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र उपादेय हैं-सुखका १ मिध्याहगादिकं हेय सम्यग्गादिकं प्रायम् ।

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